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उत्तराखंड

सिंगापुर से सीखें कचरे की रीसाइक्लिंग, पर्यावरण के साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी हितकारी

रीसाइक्लिंग न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा है। भारत में सामग्री रिकवरी का बाजार प्रति वर्ष 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और 2024 तक इसके 537.2 लाख डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।  

देश में कचरा या अपशिष्ट प्रबंधन एक बहुत बड़ी समस्या है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर भी इस समस्या से ग्रस्त हैं। दिल्ली के बाहरी इलाके में कई जगह कूड़े-कचरे के पहाड़ देखे जा सकते हैं। लेकिन यह ऐसी समस्या नहीं है कि इसे हल नहीं किया जा सकता है। अब कचरा प्रबंधन एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है। सिंगापुर और इंदौर जैसे कुछ शहरों में सुनियोजित तरीके से कचरे का प्रबंधन किया जाता है। दिल्ली सरकार चाहे तो सिंगापुर से कचरा प्रबंधन की सीख ले सकती है।

सिंगापुर जैसे देश में भी कचरा प्रबंधन की चुनौती थी। देश की बढ़ती आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ने इस दिशा में मुश्किल खड़ी कर दी थी। वर्ष 2016 में एक दिन में रिकॉर्ड 8,559 टन कचरा इकट्ठा किया गया था। वहीं 2019 में 72 लाख टन से अधिक ठोस कचरा पैदा हुआ। इसमें से 29.5 लाख टन कचरे को रीसाइकल नहीं किया जा सका। यह कचरे की एक बड़ी मात्रा थी, जिसे सावधानीपूर्वक और कुशलता से प्रबंधित करने की जरूरत थी। पर अब सिंगापुर ने इस समस्या को हल करने का एक आसान तरीका खोज लिया है।

सिंगापुर में राष्ट्रीय पर्यावरण एजेंसी (एनईए) सभी सामान्य और खतरनाक कचरे की देखरेख करती है। कचरा इकट्ठा करने के बाद उसे एक भस्मीकरण संयंत्र में एक हजार डिग्री सेल्सियस तापमान पर जलाया जाता है। जलने के बाद जो राख बचती है, उसे ऐसे पानी में बहाया जाता है, जो समुद्र में न मिलता हो। इसके अलावा रीसाइक्लिंग का भी विकल्प है, लेकिन सभी सामग्रियों को रीसाइकल नहीं किया जा सकता है, जैसे पॉलीस्टाइनिन। यही बात खाद बनाने पर भी लागू होती है, क्योंकि केवल जैविक सामग्री, जैसे भोजन और पेड़ के स्क्रैप से ही खाद बनाई जा सकती है। इसलिए भस्मीकरण को सबसे अच्छा उपाय माना जाता है। कचरों को जलाने के क्रम में निकलने वाली जहरीली गैस को वैज्ञानिक तरीके से छान लिया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण भी नहीं होता। कचरे के दहन से उत्पन्न गर्मी का उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है। यहां के लोग खुद ही कागज, प्लास्टिक और कांच के कचरे को रीसाइकल करते हैं।

भारत में 75 प्रतिशत पुनर्नवीकृत करने योग्य कचरे के केवल 30 प्रतिशत का ही पुनर्नवीनीकरण हो पाता है। इसलिए अपशिष्ट प्रबंधन व्यवसाय में विकास की काफी संभावना है। कई उद्यमी कचरे के प्रबंधन और इसे महत्वपूर्ण संसाधनों में बदलने के नए तरीकों के बारे में सोच रहे हैं। बढ़ते घनत्व और तेजी से औद्योगिकीकरण के कारण बड़ी मात्रा में जहरीले और गैर-खतरनाक कचरा उत्पन्न होते हैं। कचरे में कई तरह की वस्तुएं होती हैं। इनमें प्लास्टिक से बनी बोतलें, प्लास्टिक से बनी फिल्में, फोम और कठोर प्लास्टिक रेशे तथा अन्य चीजें शामिल हैं। कुछ नगर पालिकाएं और निगम सामान्य उपयोग के लिए लेबल वाले कंटेनरों को खुले में रखकर आवासीय और वाणिज्यिक ग्राहकों के लिए रीसाइक्लिंग डिब्बे उपलब्ध कराकर रीसाइक्लिंग को सरल बनाते हैं। पुनर्चक्रण के अनगिनत फायदे हैं और अधिक से अधिक चीजों को पुनः उपयोग लायक बनाकर हम अपने ग्रह को साफ करने में मदद कर सकते हैं।

रीसाइक्लिंग न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा है। भारत में सामग्री रिकवरी का बाजार प्रति वर्ष 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और 2024 तक इसके 537.2 लाख डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। भारतीय रीसाइक्लिंग निर्माता उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। देश में इस समय कचरे की रीसाइक्लिंग प्रबंधन की दस कंपनियां हैं। इनकी प्रमुख सेवाओं में अपशिष्ट संग्रह, पुनर्चक्रण, निष्कासन और खतरनाक रसायनों का संग्रह, ढुलाई, प्रसंस्करण, प्लास्टिक पुनर्चक्रण और विनाश, कंटेनर किराये पर लेना और सुरक्षा एजेसिंया शामिल हैं।  अपशिष्ट संग्रह, छंटाई, निपटान और पुनर्चक्रण को संभालने वाली फर्मों के पास यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपकरण हैं कि कचरे का ठीक से निपटान किया जाए।

संग्रहीत कचरे को या तो रीसाइकल किया जाता है या खाद बनाई जाती है। यह कार्बन उत्सर्जन को कम करके पृथ्वी एवं पर्यावरण को बचाता है। कुछ व्यवसाय कचरे को रीसाइकल कर उपयोगी और मूल्यवान वस्तुओं में बदल देते हैं। कुशल अपशिष्ट निपटान पर्यावरण को स्वच्छ रखेगा।

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