भाई जगन के लिए 3 हजार किमी पदयात्रा, अब विरासत छीनने उतरीं वाईएस शर्मिला; पिता की सीट पर नजरें
वाईएसआर खुद तीन बार सांसद रहे। शर्मिला 2019 चुनाव तक अपने भाई वाईएस जगनमोहन रेड्डी का प्रचार करती रही हैं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद जगन के बदले रवैये से नाराज होकर उन्होंने अपनी खुद की पार्टी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (वाईएसआरटीपी) बनाई। बाद में उनकी मां विजयम्मा भी बेटे को छोड़ उनकी पार्टी में शामिल हो गईं।
आंध्र प्रदेश की कडप्पा सीट पर वाईएसआर परिवार की विरासत छीनने की लड़ाई के लिए इसी परिवार की सदस्य और पूर्व सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी वाईएस शर्मिला उतरी हैं। कभी अपने भाई को चुनाव जिताने के लिए 3000 किमी पदयात्रा करने वालीं शर्मिला कांग्रेस के टिकट पर अपने पहले चुनाव में चचेरे भाई अविनाश रेड्डी को कड़ी चुनौती देंगी। कडप्पा सीट वाईएसआर परिवार के लिए धरोहर जैसी है। 1989 से इस पर इनका कब्जा है।
वाईएसआर खुद तीन बार सांसद रहे। शर्मिला 2019 चुनाव तक अपने भाई वाईएस जगनमोहन रेड्डी का प्रचार करती रही हैं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद जगन के बदले रवैये से नाराज होकर उन्होंने अपनी खुद की पार्टी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (वाईएसआरटीपी) बनाई। बाद में उनकी मां विजयम्मा भी बेटे को छोड़ उनकी पार्टी में शामिल हो गईं। शर्मिला ने पिछले साल अपनी राजनीति तेलंगाना से आंध्र प्रदेश में शिफ्ट की और कांग्रेस के साथ विलय कर लिया।
शर्मिला अपनी पार्टी के गठन के बाद से बेरोजगारी के मुद्दे पर मुखर रही हैं। तेलंगाना में बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उजागर करने के लिए हैदराबाद के धरना चौक पर भूख हड़ताल की। यही नहीं, पिछले साल जून में मेडक जिले में बेरोजगारी के कारण आत्महत्या करने वाले एक युवक के परिवार से मिलने उसके गांव भी गई थीं।
कडप्पा में प्रतिद्वंद्वी चचेरे भाई के खिलाफ कानूनी जंग भी लड़ रहीं
कडप्पा के मौजूदा सांसद और शर्मिला के चचेरे भाई वाईएस अविनाश रेड्डी के खिलाफ शर्मिला उनके चाचा विवेकानंद रेड्डी की हत्या के मामले में कानूनी जंग भी लड़ रही हैं। विवेकानंद रेड्डी की बेटी सुनीता रेड्डी को इंसाफ दिलाने के लिए शर्मिला ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर मुकदमे को आंध्र प्रदेश से तेलंगाना स्थानांतरित कराया है।
परिवार में फूट का डर
शर्मिला खुद भी मानती हैं कि उनके लिए पिता की सीट से चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा। कडप्पा सीट पर दशकों से रेड्डी परिवार का वर्चस्व है। ऐसे में दूसरी पार्टी से वहां लड़ने से परिवार में फूट का डर है। हालांकि शर्मिला कहती हैं कि जनकल्याण के लिए इस चुनौती का सामना करने को वह तैयार हैं।