उत्तराखंड

वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 मे निजी भूमि से वृक्षों को काटने के प्राविधान की प्रकिया

वृक्षों को काटने के प्राविधान की प्रकिया को सरल बनाने के सम्बन्ध मे वन-विभाग द्वारा गठित समीति मे शामिल संयुक्तनागरिकसंगठन के साथ अन्य पर्यावरण संरक्षण अभियान मे जुटी संस्थाओ के प्रतिनिधियो ने आज बिना जांच कराए अनुमति दिए जाने के किसी भी प्रस्ताव का विरोध व्यक्त किया। बिना अनुमति निजी भूमि से वृक्षों को काटने की पूर्ण आजादी का विरोध किया।कहा ऐसी आजादी से शहरों के बढ़ते कंक्रीटकरण को बचाया जाना संभव नहीं होगा। जिसके कारण आम जिंदगी प्रदूषण के खतरों का सामना करने को बाध्य है।यह पर्यावरण संरक्षण के प्रयासो के भी खिलाफ है। कहा इससे भूमाफिया,रियलस्टेट के ठेकेदार,भूमि की खरीद फरोख्त व्यवसाय से संबंधित बिल्डर्स,वनमाफिया आदि उत्तराखंड में पूर्व में खरीदे गए विशाल भूखंडों को अपना निजी भूखंड दर्शाते हुए विशाल रूप से व्यवसायिक उद्देश्यो की पूर्ती हेतु वृक्षों का अंधाधुंध कटान करेंग।अवैध कटान के बाद साक्ष्यो के अभाव में इन अपराधियों के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही निरर्थक साबित होगी। बताया गया की प्रदेश में 2008 से वर्ष 2020 तक की अवधि में अनुमानित लगभग 14000 मामले पेड़ो के अवैध कटान के सामने आ चुके हैं। इनमें लाखों पेड़ों को अवैधानिक रूप से व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए काटे जाने की दुर्भावना भी शामिल है। वकताओ ने जरूरतमंद लोगो को अनुमति की प्रकिया के सरलीकरण पर जोर देते हुए इसको आनलाईन समयबद्ध किये जाने हेतु सामूहिक प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया। वन-विभाग के इन्दरानगर केन्द्र मे अधिकारियो के साथ सम्पन्न बैठक मे पद्मश्री रविचोपडा,जगदीश बावला,अरूणा थपलियाल,द्वारिका बिष्ट,मनोज ध्यानी,भरत शर्मा,डा.मुकुल शर्मा,,कमलापंत,एस पी नौटियाल,ओमवीर सिंह,सुशील त्यागी,जगदीश बाबला,अरूणा थपलियाल आशा टम्टा,आदि शामिल थे। प्रेषक सुशील त्यागी सचिव संयुक्तनागरिकसंगठन देहरादून

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