Home Tuition in Dehradun
Uttarakhand Election Promotion 2024
उत्तराखंड

वैली ऑफ वर्ड्स इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल….लेखक मृणाल पांडे की पुस्तक पर चर्चा

-दो दिवसीय वैली ऑफ वर्ड्स के समापन पर वरिष्ठ पत्रकार व लेखक मृणाल पांडे ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हिंदी हिमालय की तरह देश के बड़े हिस्से को सींचती है।

वैली ऑफ वर्ड्स इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के सातवें संस्करण शब्दावली का रविवार को समापन हो गया। दो दिवसीय फेस्टिवल के आखिरी दिन वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने अपनी पुस्तक द जर्नी ऑफ हिंदी लैंग्वेज जर्नलिज्म इन इंडिया पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा, हिंदी भाषा की उम्र भले ही हिमालय की तरह कम है, लेकिन यह भाषा हिमालय की तरह एक बड़े हिस्से को सींचती है। कहा, कोई भी भाषा या साहित्य अपने आसपास के समाज से ही निकलती है।

राजपुर रोड स्थित एक होटल में आयोजित हुए फेस्टिवल में वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने अपनी पुस्तक पर वरिष्ठ पत्रकार संजय अभिज्ञान व पूर्व मुख्य सचिव इंदु पांडे के साथ चर्चा की। उन्होंने कहा, हिंदी के लिए पाठक संख्या एक और समस्या थी। 1947 में जब भारत आजाद हुआ, बहुत कम लोग साक्षर थे। 1980 के दशक के बाद से हिंदी पट्टी में जनसांख्यिकीय परिवर्तन और साक्षरता में वृद्धि ने हिंदी समाचार पत्रों के लिए बाजार को व्यापक बना दिया।

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार संजय अभिज्ञान ने कहा, यह पुस्तक हिंदी पत्रकारिता की दशा और दिशा को बयां करती है। इस पुस्तक के हर पेज में नया तथ्य पढ़ने को मिलता है, जो चौकाने वाला है। पत्रकारिता से जुड़े लोगों के अलावा भी अन्य लोगों को इस पुस्तक को पढ़ना चाहिए।

युवाओं को साहित्य से जोड़ना बहुत जरूरी

फेस्टिवल के निदेशक व पूर्व आईएएस डॉ. संजीव चोपड़ा ने कहा, युवाओं को साहित्य व लेखन से जोड़ना बहुत जरूरी है। जब युवा साहित्य को पढ़ेंगेे तभी हम हिंदी साहित्य में वर्णित इतिहासकारों की रचना को समझ पाएंगे। साथ ही उन्होंने कहा, बीते कुछ सालों में साहित्य व लेखन के प्रति युवाओं करी रूचि बढ़ी है।

साहित्य और राजनीति को अलग करके न देखा जाए : निशंक

फेस्टिवल के एक सत्र में पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा, साहित्य और राजनीति को अलग करके देखने की आवश्यकता नहीं है। हिंदी का साहित्य अपने स्वर्णिम काल की ओर अग्रसर है। जीवन संघर्ष और साहित्य सृजन विषय पर आयोजित सत्र में डॉ. निशंक ने कहा, राजनीति में रहते हुए उन्होंने कभी किसी पद से प्रेम नहीं किया। इसलिए किसी पद का रहना या न रहना उनके लिए बाधक नहीं होता। उन्होंने केदारनाथ त्रासदी पर आधारित अपनी पुस्तक का हवाला देते हुए कहा, संवेदनाओं पर राजनीति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे जैसी हैं वैसी ही रहती है। डॉ. सुशील उपाध्याय की ओर से संचालित इस सत्र में डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. प्रमोद भारती, डॉ. राम विनय, डॉ. सविता मोहन, समेत कई वरिष्ठ साहित्यकार भी मौजूद रहे।

युवाओं में दिखा खासा उत्साह

दो दिवसीय फेस्टिवल में विभिन्न स्कूल व कॉलेज के छात्रों में खासा उत्साह देखने को मिला। युवाओं ने विभिन्न सत्रों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। वहीं इस मौके पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में युवाओं ने कथक व नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति से खूब तालियां बटोरी। फेस्टिवल में लगे बुक स्टॉल पर लोगों ने जमकर खरीदारी भी की।

धरती को बचाने के लिए यह है ब्लैक कार्बन आंदोलन का समय

फेस्टिवल के लुकिंग बियोंड चिपको सत्र में पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन पर चर्चा की गई। प्रसिद्ध पर्यावरणविद पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट, के साथ डाॅ. पीएस नेगी व रुचि बडोला ने ग्लेशियरों के सिकुड़ने, पर्यावरण में फैल रहे ब्लैक कार्बन के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने कहा, धरती को बचाने के लिए चिपको आंदोलन की तरह ब्लैक कार्बन आंदोलन करने का समय आ गया है।

पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा, हाल ही हमने कई बड़ी प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है, दिनोंदिन यह समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में इन समस्या से बाहर निकलने के लिए चिंतन करने की जरूरत है। रुचि बडोला ने कहा, पहाड़ों में जो विकास हो रहा है उसके परिणाम हम आए दिन देख रहे हैं।

वहीं, डाॅ. पीएस नेगी ने कहा, वर्तमान में वातावरण में मौजूद ब्लैक कार्बन की वजह से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन की चुनौती क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय बन गया है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए हमें एक बार फिर से चिपको आंदोलन की तरह ब्लैक कार्बन से वातावरण तापमान वृद्धि-ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए जन आंदोलन करने की जरूरत है।

Register Your Business Today

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button