पूरा इलाज बनाम मरहम-पट्टी… मतदाता किस पर भरोसा करेंगे? दिलचस्प होंगे इस बार के चुनावी नतीजे
क्या अकेले चुनाव घोषणापत्र से चुनाव जीता जा सकता है? खैर, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी, दोनों ऐसा ही सोचती हैं। उन्होंने अपने घोषणापत्र जारी कर दिए हैं, जिनमें भविष्य के भारत के प्रति अपना नजरिया स्पष्ट किया है। कांग्रेस ने जहां अपने घोषणापत्र को ‘न्याय पत्र’ नाम दिया है, वहीं भाजपा ने ‘संकल्प पत्र’।
जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने बताया, भाजपा का घोषणापत्र विकसित भारत के चार स्तंभों-महिला शक्ति, युवा शक्ति, किसान और गरीबों पर केंद्रित है। यह ‘जीवन की गरिमा’, ‘जीवन की गुणवत्ता’, ‘अवसरों की संख्या’ के साथ-साथ ‘अवसरों की गुणवत्ता’ की बात करता है। दूसरी तरफ, कांग्रेस का घोषणापत्र राहुल गांधी के नजरिये को प्रतिबिंबित करता है अथवा वह समस्याओं के वास्तविक समाधान के बारे में क्या सोचते हैं। यह पांच ‘न्याय’ अथवा युवाओं, महिलाओं, किसानों, श्रमिकों एवं हाशिये के समुदाय के लिए सामाजिक न्याय की पांच गारंटी की बात करता है। इसमें सरकारी नौकरी, जातिगत जनगणना, श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा और महिलाओं के खाते में धन हस्तांतरण का वादा किया गया है। यह 400 रुपये न्यूनतम मजदूरी का वादा करता है।
कई विशेषज्ञों ने यह समझने के लिए दोनों घोषणापत्रों की तुलना करने की कोशिश की है कि कौन-सी पार्टी पूर्ण उपचारों की बात करती है और कौन-सी अनिवार्य रूप से मरहम-पटटी की। कांग्रेस का घोषणापत्र मतदाताओं को लुभाने के लिए बहुत ही आकर्षक और सरल समाधान जैसा दिखता है। भाजपा का घोषणापत्र भी पार्टी की कल्याणकारी राजनीति को जारी रखने और विस्तारित करने, गरीबों और हाशिये पर रहने वाले लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने तथा रोजगार पैदा करने वाली नीतियों का वादा करता है।
भाजपा के घोषणापत्र में महिलाओं, गरीबों, युवाओं एवं किसानों समेत 10 सामाजिक समूहों और आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था समेत 14 क्षेत्रों को गारंटी सूची में शामिल किया गया है। हरेक मामले में मोदी ने नीतिगत हस्तक्षेप, जमीनी कार्यान्वयन और योजनाओं के पूरा होने का आश्वासन दिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भाजपा के अंत्योदय का मार्गदर्शक मंत्र पूरा हो। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि भाजपा के वादों को मोदी की गारंटी का समर्थन है। वर्ष 2014 में सत्ता में आने और फिर 2019 में दूसरा कार्यकाल पाने के बाद से उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उनकी सरकार अकेले सभी वादों को पूरा करने में विश्वास करती है। इससे यह भी समझ में आता है कि भाजपा ‘हिंदुत्व’ पर ज्यादा जोर नहीं देगी, बल्कि यह मोदी के इच्छानुसार ‘सबका विकास’ पर जोर देगी। भाजपा मध्यवर्ग और नव-मध्यवर्ग की आकांक्षाओं को पूरा करना चाहती है, जिसके बारे में उसका दावा है कि उसे उसने पिछले दशक में गरीबी से बाहर निकाला है। हर पहल के लिए मोदी की गारंटी की वजह यही है कि मतदाताओं की समस्याओं को हल करने की अपनी क्षमता पर भरोसा दिलाने के लिए भाजपा पूरी तरह से मोदी की लोकप्रियता पर निर्भर है।
गरीबों से अगले पांच वर्षों तक मुफ्त राशन, रियायती स्वास्थ्य सेवा, आवास सुविधाएं, सौर ऊर्जा उत्पादन जैसी योजनाओं के जरिये शून्य बिजली बिल का वादा किया गया है। मध्य वर्ग के लिए, दूसरी एवं तीसरी श्रेणी के शहरों में उच्च वेतन वाली नौकरी के सृजन, जीवन की सुगमता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा का वादा किया गया है। महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए वित्तीय स्वतंत्रता, कल्याण, सुरक्षा और कार्यबल में भागीदारी बढ़ाने का वादा किया गया है। गौरतलब है कि महिलाओं ने पिछले लोकसभा चुनाव एवं कई राज्यों के चुनावों में जीत हासिल करने में भाजपा की मदद की थी। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी लगातार मोदी सरकार की पहुंच में बने हुए हैं।
घोषणापत्र में उनकी विरासत और संस्कृति की रक्षा, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार और उनके लिए आजीविका के स्तरों का विस्तार करने की बात कही गई है। दूसरी तरफ कांग्रेस का मानना है कि उसे गरीब समर्थक एवं कल्याणोन्मुख घोषणापत्र पर टिके रहना चाहिए। यह गरीबों के लिए आर्थिक भुगतान, श्रमिकों को उच्च मजदूरी एवं ग्रेजुएटों के लिए अनिवार्य तौर पर भुगतान के साथ इंटर्नशिप का वादा करता है। कांग्रेस ने अपने मूल मतदाताओं का पूरा ख्याल रखने की कोशिश की है। इसने सभी गरीब परिवारों को एक लाख रुपये देने का वादा किया है, हालांकि 2011 के बाद से देश में कितने गरीब हैं, उसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है, जब आखिरी बार सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण किया गया था। कांग्रेस ने दूसरे भूमि सुधार में अतिरिक्त सरकारी जमीन को गरीबों में बांटने के लिए एक प्राधिकरण बनाने का भी वादा किया है।
कांग्रेस ने राष्ट्रीय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कानून बनाने का भी वादा किया है, जिसके तहत किसी को भी एमएसपी से कम मूल्य पर अनाज खरीदने की इजाजत नहीं होगी। यह फसलों में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहन देने और खेती को भी मनरेगा के दायरे में लाने का वादा करती है। पार्टी ने कहा है कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को एक वैधानिक निकाय बनाया जाएगा। और किसानों की ऋण आवश्यकता और उनकी वित्तीय स्थिति तथा मंडियों से बाहर भी किसानों को अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता की समीक्षा करने के लिए भी एक निकाय बनाने का वादा किया गया है। हालांकि कांग्रेस ने यह नहीं बताया है कि इन सभी वादों को पूरा करने के लिए वह धन कहां से लाएगी, क्योंकि इन्हें पूरा करने पर सरकारी खजाने पर भारी बोझ बढ़ेगा। आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा हटाने और मुफ्त सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने जैसे विभिन्न वादों को लागू करने की समय सीमा भी नहीं बताई गई है।
कांग्रेस के वादों का राजकोष पर बोझ बढ़ सकता है। वर्ष 2012 के गरीबी अनुमान के अनुसार, प्रति गरीब परिवार को एक लाख रुपये का भुगतान करने पर सरकार को एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का खर्च करना पड़ सकता है। सभी खाली पदों को भरने से भी खजाने पर बार-बार बोझ बढ़ेगा। अब यह देखने वाली बात होगी कि मतदाता किस पर भरोसा करते हैं-नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी के वादों पर!