बिहार की यह लोकसभा सीट मिनी चित्तौड़गढ़; मतदाता खामोश, उम्मीदवार बेचैन
बिहार में मिनी चित्तौड़गढ़ नाम से विख्यात औरंगाबाद लोकसभा सीट पर लगातार चौथी बार जीत की आस में एनडीए की तरफ से सुशील कुमार सिंह ताल ठोक रहे हैं। एनडीए उम्मीदवार के लिए चुनौती पेश करने में गठबंधन के अभय जोर लगा रहे हैं। जानिए इस संसदीय सीट के बारे में
कभी नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात मध्य बिहार का औरंगाबाद आज किसी भी सामान्य शहर जैसा दिखता है। यहां सीमेंट की विशाल फैक्टरी है, तो विख्यात सूर्य मंदिर भी है, जो आस्था का बड़ा केंद्र है।
औरंगाबाद सीट पर मतदान पहले चरण में 19 अप्रैल को है, पर यहां आपको कहीं भी चुनाव का रंग दिखेगा नहीं। पोस्टर, झंडे, बैनर सब जैसे नदारद हैं। कहीं चुनाव का शोर-शराबा नहीं सुनाई देता। मतदाता भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं हैं, इसलिए प्रत्याशियों में बेचैनी है। राजपूत बहुल सीट की खास बात यह है कि यहां से हमेशा ही राजपूत उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है।
इसी वजह से इसे मिनी चित्तौड़गढ़ भी कहा जाता हैं….नारे उछलते हैं…चित्तौड़गढ़ के किले को ढहा दो। यहां से एनडीए के प्रत्याशी और भाजपा नेता सुशील कुमार सिंह लगातार चौथी बार जीतने का प्रयास कर रहे हैं। वे 2009, 2014 और 2019 में यहां से सांसद रह चुके हैं। 1998 में समता पार्टी से जीत दर्ज कर चुके हैं। उनके सामने अभय कुशवाहा हैं, जो जनता दल (यू) छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में चले गए थे और उन्हें तत्काल टिकट मिल भी गया। देखा जाए तो इस सीट पर दोनों के बीच सीधा मुकाबला है। अभय कुशवाहा टिकारी से विधायक रह चुके हैं और इस इलाके को समझते हैं।
तो जोरदार होता मुकाबला
सूर्य मंदिर के बाहर नकुल कुमार की प्रसाद और फूलों की दुकान है। उनका कहना है कि लोग भाजपा को पसंद करते हैं, इसकी वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि है। मौजूदा सांसद का काम ठीक है। पास खड़े विजय कहते हैं, सामने कोई मजबूत प्रत्याशी भी तो नहीं है। अगर कोई कद्दावर कैंडिडेट होता तो शायद मुकाबला भी जोरदार होता। हालांकि वह यह जोड़ते हैं कि वोट तो उसे ही देंगे, जो हमारी आवाज सुनेगा।
सीट का इतिहास
औरंगाबाद को 1973 में गया से अलग करके जिला बनाया गया था। हालांकि वर्ष 1957 से ही यह लोकसभा सीट है। बिहार विभूति और राज्य के पहले उप मुख्यमंत्री डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा औरंगाबाद से ही थे। अनुग्रह नारायण सिन्हा आजादी की लड़ाई के योद्धा रहे थे। उनके पुत्र सत्येंद्र नारायण छह बार सांसद भी रहे।
दो परिवारों का ही वर्चस्व
यह सबसे दिलचस्प तथ्य है कि औरंगाबाद संसदीय सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। इस सीट पर 1952 से 1989 तक सत्येंद्र नारायण सिन्हा के परिवार का कब्जा रहा। 1989 में रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह ने यहां जनता दल की तरफ से जीत दर्ज की। एक बार फिर 1991 में वे सांसद बने। मौजूदा सांसद सुशील कुमार सिंह उन्हीं के बेटे हैं। इस सीट से ज्यादातर सांसद इन्हीं दोनों परिवारों से रहे हैं।
मुद्दे…
औरंगाबाद सीट पर लगभग 18 लाख वोटर हैं। इनमें से लगभग 70 फीसदी खेती से जुड़े हैं। यहां सिंचाई बड़ी समस्या है। उत्तर कोयल नहर परियोजना शुरू होने के 48 साल बाद भी पूरी नहीं हो पाई है। औरंगाबाद-बिहटा रेल परियोजना अटकी है, इस पर भी लोग आवाज उठा रहे हैं।
औरंगाबाद: पिछले दो चुनावों का हाल
2019
पार्टी उम्मीदवार मत मत%
भाजपा सुशील कुमार सिंह 4,27,721 45.72%
हम उपेंद्र प्रसाद 3,57,179 38.18%
बसपा नरेश यादव 33,772 3.61%
2014
भाजपा से सुशील कुमार सिंह को 3,07,941 मत मिले जिसका मत प्रतिशत 39.16% रहा था।
कांग्रेस से उम्मीदवार निखिल कुमार को 2,41,594 वोट मिले, जिसका 30.72% था।
जदयू से बागी उम्मीदवार कुमार वर्मा ने 1,36,137 जीते, जिनका वोट प्रतिशत 17.31% रहा।
जातीय समीकरण : राजपूत वोटर प्रभावी
इस सीट पर सबसे ज्यादा राजपूत वोटर हैं। लगभग 18 फीसदी। उसके बाद यादव वोटरों की संख्या दस फीसदी है। मुस्लिम और कुशवाहा वोटर लगभग 8.5-8.5 फीसदी हैं। भूमिहार व ब्राह्मण मिलाकर वोटरों की संख्या आठ फीसदी है। एससी मतदाता 18 फीसदी के करीब हैं।
विख्यात सूर्य मंदिर
औरंगाबाद के लिए देव नामक जगह खास मायने रखती है। इसी जगह प्राचीन सूर्य मंदिर है, जिसे पांचवीं या छठी शताब्दी में बनवाया गया था। इसकी खासियत है कि ज्यादातर सूर्य मंदिर पूर्व की तरफ होते हैं, लेकिन इसका द्वार पश्चिम की तरफ है। मंदिर नागर-द्रविड़ शैली में बनाया गया है।