मानसून की दस्तक के साथ ही जोशीमठ को लेकर बढ़ी सरकार की चिंता, बारिश में और बिगड़ सकते हैं हालात
मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार 25 जून को मानसून प्रदेश में दस्तक दे सकता है, जो जोशीमठ के साथ ही सरकार की भी परीक्षा लेगा। फिलहाल जोशीमठ में भू-धंसाव की स्थिति स्थिर है। लेकिन आने वाले दिनों में हालात क्या होंगे, इसे लेकर अभी कई तरह की आशंकाएं हैं।
यह सवाल सभी के जेहन में है कि मानसून में कहीं भू-धंसाव के बाद बनी दरारें और गहरा तो नहीं जाएंगी। पानी के नए स्रोत भी फूट सकते हैं। शासन प्रशासन भी इंतजार करो और देखो की स्थिति में है। प्रदेश में पांच दिन बाद उत्तराखंड में प्रवेश करने वाले मानसून को लेकर जोशीमठ के स्थानीय लोगों के साथ ही शासन-प्रशासन के लोग भी चिंतित हैं।
विशेषज्ञों ने जोशीमठ में और भूगर्भीय अस्थिरता की आशंका व्यक्त की है, जहां अब तक 868 भवनों में दरारें आ गई हैं और 181 को असुरक्षित घोषित किया गया है। 502 प्रभावित परिवारों में करीब 437 को मुआवजा बांटा जा चुका है, जबकि 65 परिवार अभी भी प्रशासन की ओर से विभिन्न होटलों और धर्मशालाओं में ठहराए गए हैं।
जोशीमठ भू-धंसाव के बाद वैज्ञानिक संस्थाएं अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंप चुकी हैं। इन रिपोर्ट पर कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं। शासन के सूत्रों की मानें तो रिपोर्ट में जोशीमठ भू-धंसाव की स्थिति करीब-करीब स्पष्ट हो चुकी है। लेकिन यहां भी बात मानसून पर अटकी हुई है। मानसून की बारिश जोशीमठ पर क्या असर डालेगी, सरकार को भी इस बात का इंतजार है। संभवत इसके बाद ही जोशीमठ के संबंध में सरकार की ओर से कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा।
चमोली जिले का एक बड़ा हिस्सा बाहरी हिमालय की दक्षिणी ढलानों पर स्थित है। मानसून के दौरान जल धाराएं खाई वाली घाटियों के माध्यम से प्रवेश करती हैं। यहां जून से सितंबर के बीच मानसून अपने चरम पर होता है। मानसून के दौरान लगातार होने वाली बारिश जोशीमठ में दरारें बढ़ा सकती है। राज्य में औसत 1162.7 मिमी की बारिश होती है, जबकि चमोली में औसतन 1230.8 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। पिछले साल के मानसून के दौरान जब राज्य में 1128.0 मिमी बारिश (जून-सितंबर) हुई थी, तब चमोली राज्य के 13 जिलों में से दो जिलों में से एक था, जहां सबसे अधिक बारिश हुई थी। चमोली में 1196.4 मिमी बारिश दर्ज की गई।
जोशीमठ भूधंसाव के साथ ही शासन के निर्देश पर सिंचाई विभाग ने जोशीमठ की जड़ में रिटेनिंग वॉल बनाने के लिए करीब 200 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार की थी। इसके साथ शहर में पानी की निकासी के लिए छह नालों का निर्माण किया जाना था। इसके लिए करीब 75 करोड़ रुपये की डीपीआर शासन को सौंपी गई थी। लेकिन फिलहाल इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता जयपाल सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट के बाद शासन स्तर पर जो भी निर्णय लिया जाएगा, उसी के अनुसार इस दिशा में आगे बढ़ा जाएगा।
जोशीमठ में अत्यधिक बारिश होने पर भू-धंसाव की गति और बढ़ सकती है। भू-धंसाव के कारण तमाम सेफ्टी टैंक भी लीकेज हुए होंगे, जिनका पानी भी रास्ता तलाशेगा। बारिश का पानी इसके साथ मिलकर नए स्रोतों को जन्म दे सकता है। इससे भू-कटाव बढ़ेगा। – डॉ. एके बियानी, भूविज्ञानी एवं, पूर्व प्राचार्य डीबीएस पीजी कॉलेज