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उत्तराखंड

आग से खेलतीं दीदी…, ‘लाठी के जोर पर लोकतंत्र’ कायम रखना चाहती हैं सीएम ममता बनर्जी

बंगाल में एनआईए टीम पर हमले ने साफ कर दिया है कि ममता सरकार ‘लाठी के जोर पर लोकतंत्र’ की परिपाटी को हर हालत में कायम रखना चाहती हैं।

लोकसभा की 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में चुनावी कोलाहल कुछ ज्यादा ही सुनाई पड़ रहा है। छोटा संदेशखाली कहे जा रहे पूर्व मिदनापुर के भूपतिनगर में छह अप्रैल को एनआईए की टीम पर हमले ने साफ कर दिया है कि राज्य में कानून-व्यवस्था की मशीनरी किस तरह ध्वस्त हो गई है।

वर्ष 2022 में पूर्वी मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर में एक तृणमूल नेता के घर बम विस्फोट हुआ और तीन लोगों के चीथड़े उड़ गए। दो घायल फरार हो गए थे। एनआईए को तभी से उन दोनों की तलाश थी। एनआईए को जांच का जिम्मा कलकत्ता हाईकोर्ट ने दिया था। कई बार समन भेजने के बावजूद ये आरोपी हाजिर नहीं हो रहे थे। सफाई देते हुए पांच अप्रैल की सभा में ममता ने उस विस्फोट को पटाखे का विस्फोट बताया। सवाल है कि क्या पटाखा फटने से शरीर के अंग डेढ़ किलोमीटर दूर जा सकते हैं। हद तो तब हो गई, जब मुख्यमंत्री ममता ने कहा कि लोगों ने वही किया, जो करना चाहिए था। बंगाल  पुलिस ने तो एनआईए की टीम पर ही महिलाओं से छेड़खानी का केस दर्ज कर लिया। संदेशखाली में ईडी के खिलाफ भी इसी तरह के आरोप लगाकर स्थानीय थाने में केस दर्ज किया गया था, पर संभावित कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी।

आरोप है कि एक भाजपा नेता जितेंद्र तिवारी ने एनआईए के एसपी धनराजराम सिंह से उनके घर पर मुलाकात की। तृणमूल इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की बात कह रही है। वह इस चुनावी मौसम में केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रही हैं। अगर न्याय के लिए तृणमूल सरकार अदालतों की शरण में जाए, तो यह बात समझ में आती है, पर कई मामलों में वह डंडे के जोर पर लोकतंत्र चलाती हैं और अदालती आदेशों को भी ठेंगा दिखाती रही हैं। पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा पर हाल ही में पीएमएलए के तहत केस दर्ज किया गया है। ममता सरकार ने संदेशखाली में कैंप लगाकर जिन लोगों की हड़पी गई जमीनें वापस लौटाईं, उन पर शाहजहां की गिरोह के दूसरे लेयर के उपद्रवी कब्जा नहीं करने दे रहे। आज भी पुलिस के असहयोग का आलम यह है कि बलात्कार पीड़ित महिलाएं घूंघट में आकर कलकत्ता हाईकोर्ट में बयान दर्ज करा रही हैं।

कई कारणों से सिर्फ बशीरहाट सीट का जनादेश पूरे बंगाल का भविष्य इंगित करेगा। इसी निर्वाचन क्षेत्र में संदेशखाली है, जहां की डरावनी कहानियां झकझोर देती हैं। हिंदी में ठीक-ठाक बात करने में सक्षम रेखा पात्रा को तृणमूल ने बाहरी मान लिया है। वैसे, तृणमूल हिंदी बोलने वालों को बाहरी ही कहती रही है। कुछ साल पहले आसनसोल में एक चुनावी सभा में ममता ने हिंदी भाषियों को अतिथि कहा था।

ऐसे माहौल में, भाजपा ने सही दांव चलते हुए संदेशखाली की पीड़िताओं को एकजुट करने वाली रेखा पात्रा को उम्मीदवार बनाया, ताकि पूरे चुनाव में महिला सम्मान का विमर्श जिंदा रहे। ममता की बड़ी ताकत राज्य की 49 प्रतिशत महिला वोटर हैं। इस सीट पर तृणमूल ने मुस्लिम आबादी को देखते हुए एक बार सांसद रह चुके हाजी नुरुल इस्लाम को टिकट दिया है, जिन पर वर्ष 2010 में इसी इलाके में दंगे भड़काने का आरोप लगा था। अभी चार अप्रैल को उत्तर बंगाल की चुनावी सभा में ममता ने लोगों से कहा कि वे दंगा न करें, और दंगा न होने दें। रामनवमी से ठीक पहले यह संदेश जारी करने की क्या जरूरत थी?

बशीरहाट का बड़ा हिस्सा सुंदरबन के जंगलों व टापुओं पर बनी बस्तियों से घिरा है। यहां साढ़े 17 लाख मतदाता हैं, जिनमें करीब 87 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। इस क्षेत्र में लगभग 46.3 फीसदी मुस्लिम आबादी है। अनुसूचित जाति के करीब 25.4 प्रतिशत लोग हैं और रेखा पात्रा इसी समुदाय से हैं। पिछले दो महीनों से इलाके की महिलाओं के लक्ष्मी भंडार के रुपये खातों में नहीं आ रहे हैं। इन महिलाओं ने प्रदर्शन करते हुए पूछा कि क्या यह राशि तृणमूल दे रही है? इन मेहनतकश महिलाओं के प्रति किसी की ममता अगर नहीं छलकती है, तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है?

सात अप्रैल को उत्तरबंगाल के धूपगुड़ी में चुनाव प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि अपराधियों को बचाने के लिए तृणमूल सरकार केंद्रीय एजेंसियों पर हमले करवा रही है। मुख्यमंत्री होकर राष्ट्र से लड़ने का दुस्साहस दीदी को भारी पड़ सकता है। कई बार शक होता है कि कहीं ममता खुद ही राज्य को राष्ट्रपति शासन की ओर तो नहीं ले जा रही हैं, ताकि क्षेत्रीयता का बवंडर उठाया जा सके? हालांकि भाजपा ऐसा ‘मौका’ नहीं देने के पक्ष में है।

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