48 घंटे में कैसे बदल गए विजेंदर सिंह, कौन है उन्हें भाजपा में लाने वाला मास्टरमाइंड?
विजेंदर सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर दक्षिणी दिल्ली से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में वे तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन कमजोर हालत में भी उन्होंने एक लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे।
बॉक्सर विजेंदर सिंह ने कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का कमल थाम लिया है। विजेंदर सिंह के भाजपा में आने पर अनेक लोगों को आश्चर्य हो रहा है। इसका कारण यह है कि 24 घंटे पहले तक वे न केवल राहुल गांधी और कांग्रेस की प्रशंसा कर रहे थे, बल्कि ठीक 48 घंटे पहले यानी एक अप्रैल को ही उन्होंने यह बात कही थी कि वे जाट समाज की इज्जत के लिए किसी भी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। यह बात उन्होंने अपने ट्विटर (अब एक्स) पर शेयर भी किया है।
महिला पहलवानों के मामले में कड़ी भूमिका निभाने वाले विजेंदर सिंह एक रात पहले तक एक वीडियो शेयर करते हुए केंद्र सरकार पर हमला बोल रहे थे और जल्द ही सबको न्याय मिलने की बात भी कह रहे थे, लेकिन अचानक वे भाजपा के समर्थन में आ गए। इसे देखते हुए लोग उनके भाजपा में आने के पीछे संभावित कारण को लेकर अलग-अलग अटकलें लगा रहे हैं, लेकिन चर्चा है कि भाजपा के एक दिग्गज नेता ने रातों रात भाजपा में लाने का रास्ता तैयार कर विपक्ष का पूरा समीकरण पलट दिया।
ये है भाजपा में आने की असली वजह
दरअसल, विजेंदर सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर दक्षिणी दिल्ली से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में वे तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन कमजोर हालत में भी उन्होंने एक लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे। अब उसी सीट पर भाजपा से रामवीर सिंह बिधूड़ी और आम आदमी पार्टी से सहीराम पहलवान चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग होकर चुनाव लड़ा था, जबकि इस बार वे संयुक्त होकर इंडिया गठबंधन के नीचे चुनाव लड़ रहे हैं
यदि पिछले चुनाव के आंकड़ों को ध्यान से देखें तो भाजपा के उम्मीदवार ने आप-कांग्रेस के संयुक्त वोटों से लगभग दो लाख ज्यादा वोट हासिल किए थे। लेकिन इस बार के चुनाव में 2019 का असर न होने के कारण पार्टियों को मिलने वाले मतों का बंटवारा हो सकता है। चूंकि, इस बार आप और कांग्रेस संयुक्त होकर चुनाव लड़ रहे हैं, दोनों पार्टियों के वोट मिल सकते हैं जिससे भाजपा के उम्मीदवार की जीत की राह कठिन हो सकती है।
केंद्रीय नेता के इशारे पर दिल्ली के एक नेता ने निभाई भूमिका
चर्चा है कि इसी क्षेत्र के एक भाजपा नेता ने विजेंदर सिंह को भाजपा में लाकर उनका सही उपयोग करने की राह पार्टी नेतृत्व को दिखाई। नेता ने पार्टी के एक केंद्रीय नेता को यह बात बताई कि विजेंदर सिंह भले ही अपने दम पर चुनाव जीतने का दमखम न रखते हों, लेकिन जाट समुदाय के प्रभाव वाली सीटों पर वे एक बड़े वोटर को प्रभावित करने का असर अवश्य रखते हैं
विशेषकर युवाओं के बीच विजेंदर की लोकप्रियता से भाजपा को लाभ मिल सकता है। इसके बाद ही विजेंदर को भाजपा में लाने की मुहिम शुरू हुई और 24 घंटे के अंदर विजेंदर ने पाला बदल लिया। जानकारी के मुताबिक, विजेंदर सिंह को पार्टी में आने के लिए बड़ी भूमिका का वादा किया गया है। हालांकि, इस बार उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारने की कोई संभावना नहीं है।
क्या रहेगी भूमिका?
विजेंदर सिंह की भाजपा में क्या भूमिका रहेगी? इस सवाल पर भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी में लाने के पहले उन्हें किसी तरह का आश्वासन नहीं दिया गया है। लेकिन जाट समुदाय के हीरो होने के कारण उनका लोकसभा चुनावों में बेहतर उपयोग किया जाएगा। पश्चिमी यूपी, राजस्थान के साथ-साथ हरियाणा तक में उनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
चुनाव में क्यों नहीं?
सूत्रों के मुताबिक, विजेंदर सिंह को लोकसभा चुनावों में उतारने की संभावना काफी कम है। इसका बड़ा कारण है कि जाट समाज के प्रभाव वाली ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की जा चुकी है। लेकिन लोकसभा चुनावों के बाद ही इसी साल होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव में उनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। चूंकि, हरियाणा में एक वर्ग के भाजपा से नाराज होने के कारण पार्टी की संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं, लिहाजा पार्टी के समीकरणों को ठीक करने के लिए उनका उपयोग किया जा सकता है।
हेमा मालिनी के रास्ते का कांटा साफ
दरअसल, चर्चा थी कि कांग्रेस उन्हें मथुरा की लोकसभा सीट पर भाजपा की उम्मीदवार हेमा मालिनी के सामने अपना उम्मीदवार बना सकती है। यदि ऐसा होता तो मथुरा की सीट पर हेमा मालिनी का जीतना मुश्किल हो सकता था। इस जाट प्रभाव वाले क्षेत्र में हेमा मालिनी के सामने भी एक जाट प्रत्याशी के चुनाव मैदान में उतरने से सारे समीकरण उलट-पलट हो सकते थे।
जाट समुदाय, विशेषकर युवाओं के बीच विजेंदर सिंह की लोकप्रियता से कांग्रेस को लाभ मिल सकता था और इससे इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को लाभ मिल सकता था। जाट समुदाय के वोटों में बंटवारे से इस लोकसभा क्षेत्र में नए समीकरण बन सकते थे जिसका परिणाम रोचक हो सकता था। लेकिन विजेंदरसिंह के अचानक पाला बदलने से इंडिया गठबंधन के सारे समीकरण उलट गए हैं।