20 साल बाद हुआ न्याय, दो भाइयों को मिलेगा पीआरडी के स्वयं सेवक का दर्जा
20 साल बाद दो भाइयों को मिलेगा पीआरडी के स्वयं सेवक का दर्जा मिलेगा। बूढ़े पिता ने आरटीआई के जरिए इंसाफ की लड़ाई लड़ी। जिसके बाद सूचना आयुक्त ने पीआरडी प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया।
एक भाई ने प्रांतीय रक्षक दल (पीआरडी) के लिए प्रशिक्षण लिया। दूसरे भाई ने प्रशिक्षण लेने के बाद पीआरडी की ड्यूटी भी निभाई, इसके बावजूद नियमों के फेर में दोनों को पीआरडी जवान बनने से वंचित रखा गया। ऐसे में 72 साल के बुजुर्ग पिता ने आरटीआई के जरिए बेटों को इंसाफ दिलाने की ठानी। अब 20 साल बाद दोनों भाइयों को पीआरडी में पहचान मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
बीती दो जुलाई को राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने आदेश जारी कर दिया है कि दोनों भाइयों के लिए पीआरडी का स्वयं सेवक प्रमाण पत्र जारी किया जाए। इस आदेश पर आगामी छह सितंबर तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश हैं।
याचिकाकर्ता 72 साल के जयप्रकाश पौडी गढ़वाल में रहते हैं। उनके बेटे देशबंधु और दीनबंधु ने साल 2004 में अर्द्धकुंभ मेले से पूर्व प्रशिक्षण प्राप्त किया था। बाद में दीनबंधु खराब स्वास्थ्य के कारण ड्यूटी नहीं कर सके, दूसरे भाई देशबंधु ने ड्यूटी की।
यह प्रशिक्षण पुलिस विभाग की देखरेख में 27 जनवरी से 3 फरवरी 2004 के मध्य हुआ था। प्रमाण पत्र न दाखिल करने के पीछे पीआरडी की ओर से आयोग को वजह बताई गई कि शिविर मात्र आठ दिन का हुआ था इसलिए प्रमाण पत्र नहीं जारी हुआ। पीआरडी एक्ट 1948 के तहत 22 दिन के अर्धसैन्य प्रशिक्षण और 15 दिन फिर से प्रशिक्षण के बाद ही प्रमाण पत्र दिए जाने का प्रावधान है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश जारी किया। उन्होंने टिप्पणी की कि प्रशिक्षण लेने और ड्यूटी करने के बावजूद पीआरडी में स्वयंसेवक पंजीकृत न होना आश्चर्यजनक है। यह जिला युवा कल्याण एवं पीआरडी के स्तर पर बड़ी चूक का दर्शाता है।
किसी प्रशिक्षण के बाद भी प्रमाण पत्र जारी न होना प्रशिक्षण नहीं होने के समान है। युवा कल्याण निदेशक और पीआरडी से अपेक्षा है कि इस तथ्य पर गंभीरता पूर्वक संज्ञान लेकर किसी भी प्रशिक्षण के बाद उसका प्रमाण पत्र अनिवार्य रूप से जारी करने की व्यवस्था पर विचार किया जाए।
न्याय के इंतजार में दोनों बेटों के 20 साल गुजर गए, अब तो बस यही उम्मीद है कि कम से कम उनकी पीआरडी स्वयं सेवक के तौर पर ही पहचान सुनिश्चित हो जाए।