कारगिल-लद्दाख तक डुंडा के ऊनी कपड़ों की गरमाहट, उद्योग से जुड़े जाड़-भोटिया व किन्नौरी समाज के लोग
वीरपुर डुंडा में जाड़-भोटिया व किन्नौरी समाज के लोग पारंपरिक ऊनी वस्त्र उद्योग से जुड़े हुए हैं, जो भेड़ पालन कर उनकी ऊन से अलग-अलग डिजाइन के वस्त्र तैयार करते हैं। सर्दियों में इनके द्वारा बनाए गए गर्म कपड़ों की मांग बढ़ जाती है।
सर्दियां आते ही जाड़-भोटिया समुदाय बहुल डुंडा के बने ऊनी कपड़ों की मांग बढ़ने लगी है। यहां के ऊनी वस्त्रों की मांग जम्मू और कश्मीर के कारगिल, लद्दाख में भी है। ऊनी कपड़ों की अच्छी मांग के चलते यहां कई व्यवसायी प्रतिदिन 10 से 15 हजार तक कमाई कर रहे हैं। इससे वस्त्र उद्योग से जुड़े सभी को अच्छा काम मिल रहा है।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 15 किमी दूरी पर स्थित वीरपुर डुंडा में जाड़-भोटिया व किन्नौरी समाज के लोग पारंपरिक ऊनी वस्त्र उद्योग से जुड़े हुए हैं, जो भेड़ पालन कर उनकी ऊन से अलग-अलग डिजाइन के वस्त्र तैयार करते हैं। गर्मियों में तो वस्त्रों की मांग कम हो जाती है, लेकिन सर्दियों में कोट, स्वेटर, मफलर, टोपी व जुराब की मांग बढ़ जाती है।
नालंदा वुलन स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष भागीरथी नेगी ने बताया कि सर्दियाें में भेड़ की ऊन से तैयार कपड़े खूब पसंद किए जाते हैं। कई लोगों को ऊन से चुभन की शिकायत रहती थी, जिसे दूर करने के लिए अब फर भी लगाया जाता है। इससे ऊनी कपड़े अधिक गर्म और चुभनरहित बनने से ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। उन्हें राज्य के अंदर स्थानीय बाजार के अलावा मुन्सियारी, चमोली और पड़ावों के साथ ही कारगिल और लद्दाख से भी ऊनी कपड़ों का ऑर्डर मिला है।
किस वस्त्र का कितना है मूल्य
ऊनी कोट-3 से 5 हजार, शॉल-1200, पंखी-1400, मफलर-500, टोपी और जुराब-150, नेहरू जैकेट-900, स्वेटर-1200, जैकेट फुल-700, जैकेट हॉफ-1200 आदि।
लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार होता है ऊनी कपड़ा
भेड़ की ऊन से तैयार स्वेटर, जैकेट आदि बनाने के लिए लंबी प्रक्रिया है। इसके लिए पहले भेड़ के बालों की कटिंग की जाती है। इसके बाद उसकी धुलाई कर उसे धूप में सुखाया जाता है। फिर इसकी छंटाई की जाती है। इसके बाद इसकी कार्डिंग की जाती है। कार्डिंग कर ऊन का गोला तैयार किया जाता है, जिसके बाद कताई और फिर बुनाई कर ऊनी कपड़ा तैयार होता है।