बेपर्दा किया सीसीयू, जीवन रक्षक मशीन के भी 97 लाख डकार गए अधिकारी, सीबीआई ने किया मुकदमा दर्ज

ऋषिकेश एम्स में 2.73 करोड़ के घोटाले में पूर्व निदेशक समेत तीन लोगों के खिलाफ दर्ज सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया है। सीबीआई ने जांच की तो फाइल भी गायब कर दी गई। ऋषिकेश एम्स में अधिकारियों ने कार्डियो सीसीयू निर्माण में मरीजों की जान से भी खिलवाड़ किया। पर्दे, ऑटोमेटिक दरवाजों के पैसे तो खाए ही दिल के मरीजों के लिए जीवन रक्षक मशीन डिफिब्रिलेटर के भी 97 लाख रुपये डकार गए। यह मशीन कभी सीसीयू में आई ही नहीं। हद तो तब हुई जब एक एडिशनल प्रोफेसर ने निर्माण संतोषजनक होने का प्रमाणपत्र भी दे दिया।
सीबीआई ने जब जांच की तो फाइल भी गायब कर दी। सीसीयू निर्माण में करीब 2.73 करोड़ के घोटाले में सीबीआई ने एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ. रविकांत, एडिशनल प्रो. डॉ. राजेश पसरीचा और स्टोर कीपर रूप सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। जानकारी के मुताबिक एम्स में दिसंबर 2017 में कार्डियो विभाग के कोरोनरी केयर यूनिट (सीसीयू) की स्थापना के लिए टेंडर आवंटित किए गए थे। इसका टेंडर दिल्ली की कंपनी मैसर्स प्रो मेडिक डिवाइसेस को मिला था। इस बीच शिकायत हुई कि सीसीयू का निर्माण अधूरा है और यहां घटिया गुणवत्ता के उपकरण लगाए गए हैं।इसकी प्राथमिक जांच करते हुए सीबीआई देहरादून शाखा ने गत मार्च में एक औचक निरीक्षण किया। उन्होंने दस्तावेज चेक किए तो पता चला कि कंपनी को कुल 8.08 करोड़ रुपये का भुगतान एक नवंबर 2019 से 13 जनवरी 2020 के बीच किया गया है। सीसीयू निर्माण होने के बाद एडिशनल प्रोफेसर डॉ. राजेश पसरीचा ने संतोषजनक कार्य का प्रमाणपत्र जारी कर दिया। स्टोर कीपर रूप सिंह ने भी फर्जी प्रमाणपत्र दिया और सामान सेंट्रल स्टोर में दर्ज कर दिया।सीबीआई ने पाया कि ये वस्तुएं और उपकरण रजिस्टर में तो दर्ज थीं मगर स्टोर में सामान नहीं था। लिहाजा यह प्रमाणपत्र भी झूठा पाया गया। असल कहानी तब शुरू होती है जब सीबीआई ने सीसीयू का निरीक्षण किया। वहां देखा तो दरवाजा बंद था और लिखा था सीसीयू प्रोजेक्ट निर्माणाधीन है। जब दरवाजा खोला गया तो देखा कि उपकरण बेतरतीब पड़े हुए थे। फर्श टूटा हुआ था। वहां पर किसी उपकरण का इंस्टालेशन हुआ था तो कुछ को यूं ही छोड़ दिया गया था। वहां पर पर्दे नहीं थे। ऑटोमेटिक स्लाइडिंग डोर नहीं था। सीलिंग का काम पूरा था न ही दीवारों का। इसी तरह वहां पर सबसे महंगा उपकरण डिफिब्रिलेटर भी नहीं था। यही दिल के मरीजों के लिए जीवनरक्षक उपकरण माना जाता है। इन सब अनियमितताओं में सीबीआई ने डायरेक्टर समेत तीन के खिलाफ भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया है।