युवा निशानेबाज मनु भाकर बोलीं, टोक्यो की कमी पेरिस ओलंपिक में करूंगी पूरी
युवा निशानेबाज मनु भाकर कहती हैं कि जो कुछ भी टोक्यो में हुआ, वह मेरे लिए बुरे सपने से कम नहीं था। उस हार के बाद मैंने एक माह तक पिस्टल नहीं उठाई और गहरे अवसाद में चली गई। फिर सोचा कि मैं इतनी आसानी से हार नहीं मान सकती, क्योंकि हार सबसे बड़ा मोटिवेशन है।
अपनी 75वीं सालगिरह से स्वर्णिम शताब्दी की ओर बढ़ रहा ‘अमर उजाला’ 26 और 27 फरवरी को लखनऊ में ‘संवाद : उत्तर प्रदेश’ का आयोजन किया। इस मौके पर भारत की स्टार निशानेबाज मनु भाकर दूसरे दिन (मंगलवार) कार्यक्रम का हिस्सा बनीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि जो कुछ भी टोक्यो में हुआ, वह मेरे लिए बुरे सपने से कम नहीं था। उस हार के बाद मैंने एक माह तक पिस्टल नहीं उठाई और गहरे अवसाद में चली गई। फिर सोचा कि मैं इतनी आसानी से हार नहीं मान सकती, क्योंकि हार सबसे बड़ा मोटिवेशन है।
उन्होंने आगे कहा कि जीत के मौके कभी खत्म नहीं होते। यही सोचकर घर पर चाय की केतली उठाकर बिना हिले रोकने (होल्डिंग) का अभ्यास शुरू कर दिया। खुद को पहले की तुलना में मानसिक रूप से मजबूत किया है। कुछ वक्त लगा, पिस्टल उठाई और फिर तैयारियों में जुट गई। टोक्यो में जो लक्ष्य पूरा न कर पाई, उसे पेरिस ओलंपिक में हासिल करने की चुनौती के लिए पूरी तरह से तैयार हूं।
क्लास बंक करके शुरू की शूटिंग
ऐसा नहीं कि मैंने शुरुआत में निशानेबाज के रूप में कॅरिअर बनाने का फैसला किया था। स्कूल के दिनों में क्लास बंक करती थी। कई बार बॉक्सिंग और एथलेटिक्स में हाथ आजमाया। सफलता भी मिली, लेकिन मन नहीं लगा। कुछ दिनों बाद कराटे में भी रुचि पैदा हो गई। स्कूल में शूटिंग की ट्रेनिंग शुरू हुई तो उसमें जाने लगी। जल्द ही नेशनल में खेलने का मौका मिला और स्वर्ण मिल गया। इसके बाद लगा कि निशानेबाजी में कॅरिअर बनाया जा सकता है।
अमर उजाला संवाद मंच के माध्यम से यहां मौजूद सभी अभिभावकों से कहना चाहती हूं कि वे अपने बच्चों को पूरा समय दें, ताकि वे अपनी इच्छा के अनुसार खेल अथवा पढ़ाई में कॅरिअर बना सकें।
कॅरिअर देखें या परिवार संभालें फैसला खुद महिला का ही हो
औरतों को पहले खुद, फिर परिवार व समाज से संघर्ष कर सपने पूरे करने होते हैं। आसमान की ऊंचाई पर पहुंचने के लिए बेहद संघर्ष करना पड़ता है। चार प्रतिशत महिलाएं निफ्टी की कंपनियों में अहम पदों पर हैं। 59% कामकाजी महिलाएं अपने वित्तीय निर्णय स्वयं नहीं लेती हैं। ऐसे में महिलाएं कैसे आसमान छू सकती हैं, कैसे खुद को स्वावलंबी बना सकती हैं, इस पर सफल महिला शख्सियतों- मैप माय जीनोम की सीईओ अनुराधा आचार्य व मिनिस्ट्री ऑफ टॉक की फाउंडर गीतिका गंजू धर ने ये विचार रखे।
मिनिस्ट्री ऑफ टॉक की फाउंडर गीतिका गंजू धर ने कहा, कई बार महिलाओं को कॅरिअर व परिवार के बीच एक को चुनना होता है। ऐसे में हमें अपनी प्राथमिकता देखनी होती है। जब बच्चों को मां की जरूरत ज्यादा हो, तब हमें मां की भूमिका निभानी चाहिए। ऐसा हमेशा नहीं होता कि ताकतवर महिला महिला के साथ खड़ी हो। ऐसा भी होता है कि पावर आने के बाद महिलाएं मर्दों की तरह बर्ताव करने लगती हैं। महिलाओं को सपोर्ट नहीं करतीं। यह एक गलत धारणा है कि महिलाएं पैसे मैनेज नहीं कर पातीं। वह दूसरों पर निर्भर रहती हैं। जबकि हमारी संस्कृति में लक्ष्मी जी ही फाइनेंसर हैं। महिलाएं घरों को चला सकती हैं, तो पैसे मैनेज करना बड़ी बात नहीं है।
गीतिका गंजू धर ने कहा, हम सबके अंदर दुर्गा विराजमान होती हैं। बेहद संघर्ष के बाद महिलाएं किसी मुकाम पर पहुंचती हैं। ऐसे में महिलाओं को यह खुद तय करना चाहिए कि वे कब रिटायर होंगी। दूसरों के कहने या सलाह पर निर्णय नहीं लेना चाहिए। वहीं, अनुराधा आचार्य ने कहा, महिलाएं सक्षम हैं। उन्हें हमेशा खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करना चाहिए।
मैप माय जीनोम की सीईओ अनुराधा आचार्य ने बताया कि पहले तो सिर्फ आईआईटी जाने की बात होती थी। उसके बाद यूएस जाने की होड़ लगी। मैं भी अमेरिका गई। बिजनेस स्कूल गई। फिर स्टार्टअप में काम शुरू किया। इसके बाद मैंने खुद का स्टार्टअप शुरू करने का निर्णय लिया। उस समय जीनोम नई चीज थी। मैंने वर्ष 2000 में पहली कंपनी शुरू की। उस समय भारत में ऐसी कंपनी नहीं थी। मैंने जर्मनी, नीदरलैंड, अमेरिका में कंपनियां खरीदीं। दस साल पहले हमने जीनोमिक जन्मपत्री बनाने का निर्णय लिया। इसे आप ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं। जीनोम सिक्वेंसिंग से आप बीमारियों का पता लगा सकते हैं। उनके उपचार के बारे में पता कर सकते हैं। अनुराधा आचार्य ने कहा कि पैसे का प्रबंधन बड़ी बात होती है। जैसे एक महिला घर में पैसों का प्रबंधन करती है, वैसे ही वह बाहर की दुनिया को भी मैनेज कर सकती है। बहुत-सी महिलाएं सफल बैंकर हैं।