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उत्तराखंड

क्या स्मृति ईरानी फिर बनेंगी मंत्री? भाजपा के भीतर बड़ा सवाल

सूत्रों के मुताबिक, उम्मीद है कि स्मृति ईरानी को संगठन में जिम्मेदारी दी जा सकती है या फिर उन्हें राज्यसभा के जरिए संसद में भेजा जा सकता है, लेकिन मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री उन्हें लेने से परहेज कर सकते हैं।

स्मृति ईरानी अमेठी से चुनाव हार गई हैं। हारी तो 2014 में भी थी, लेकिन इस बार की हार ने भाजपा के भीतर उनको लेकर तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं। खुद स्मृति ईरानी अभी हार की टीस से नहीं ऊबर पाई हैं, लेकिन एक बड़ा सवाल और तैरने लगा है। क्या स्मृति ईरानी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीसरी कैबिनेट में जगह मिलेगी? इसका सच 9 जून को ही सामने आएगा, लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद कम है।

इस सवाल के जवाब में भाजपा के नेता, प्रधानमंत्री की कैबिनेट के पुराने सदस्य कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। एक सदस्य ने साफ कहा कि प्रधानमंत्री की कैबिनेट उनका विशेषाधिकार है। जिसे चाहें उसमें शामिल करें? हालांकि, विचार प्रकोष्ठ से जुड़े एक बड़े नेता के मुताबिक इस बार थोड़ा मुश्किल है। प्रधानमंत्री इस बार ध्यान देंगे। सूत्र को उम्मीद है कि स्मृति ईरानी को संगठन में जिम्मेदारी दी जा सकती है या फिर उन्हें राज्यसभा के जरिए संसद में भेजा जा सकता है, लेकिन मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री उन्हें लेने से परहेज कर सकते हैं।

इस बार स्मृति ईरानी की स्थिति थोड़ा अलग है
स्मृति ईरानी को 2014 में मिशन अमेठी मिला था। राहुल गांधी तब अमेठी से सांसद थे। अब कांग्रेस के नेता किशोरी लाल शर्मा सांसद चुने गए हैं। 2014 में ईरानी चुनाव में हार गई थी, लेकिन उन्होंने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी थी। भाजपा के नेता 2014 से 2019 तक के स्मृति ईरानी के अमेठी से लगाव को याद करते हैं। बताते हैं कि 2019 में स्मृति ईरानी ने अमेठी में अपने जीत की पूरी जमीन तैयार कर ली थी। उन्होंने 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कड़ी चुनौती देकर हरा दिया था। 2019 के बाद भी स्मृति ईरानी ने अमेठी में काफी काम किया। घर बनाया, तमाम नेताओं को जोड़ा। सामाजिक समीकरण बनाए। समाजवादी पार्टी के विधायक राकेश प्रताप सिंह को भी भाजपा में लेकर आई। अमेठी में 2024 में लोकसभा चुनाव में बहुत मजबूत पिच पर होने का संदेश दे रही थी, लेकिन स्वयं के द्वारा पैदा की गई स्थितियों के कारण हार गई।

बताते चलें कि स्मृति ईरानी भाजपा के भीतर एक अलग समीकरण बनाती हैं। उत्साही नेता हैं, लेकिन मोदी सरकार के मंत्रिमंडल के तमाम पूर्व सहयोगी से उनके समीकरण बहुत अच्छे नहीं रहे। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी उनके तालमेल को बहुत सम्मानजनक नहीं माना जाता। उन्हें इस बार इन सभी स्थितियों का दबाव ढेलना पड़ सकता है।

पीएम मोदी के प्रयास से पहली बार बनी थी राज्यसभा सदस्य
सोशल मीडिया पर स्मृति ईरानी की हार लगातार चर्चा में बनी हुई है। तरह-तरह के मीम्स चल रहे हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि स्मृति ईरानी की राजनीतिक पारी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्नेह और सहयोग ने नई ऊचाइंया दी हैं। प्रधानमंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री होते थे। 2011 में स्मृति ईरानी को राज्यसभा का सदस्य बनाने के पक्ष में भाजपा के केन्द्र के नेता जरा कम थे। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्मृति ईरानी को गुजरात से राज्यसभा में भेजने का रास्ता बनाया। स्मृति ईरानी को अपने दस्तावेज तैयार करने और जमा करने में  दिक्कत आ रही थी। समय कम था। तब नरेन्द्र मोदी ने उन्हें एनसीपी प्रमुख और तत्कालीन केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का नाम सुझाया। स्मृति ईरानी भी मानती हैं कि भाऊ(शरद पवार) ने सहयोग दिया।

अमेठी से चुनाव हारने के बाद भी प्रधानमंत्री ने 2014 में स्मृति ईरानी को न केवल अपनी कैबिनेट में लिया, बल्कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसे अहम विभाग का मंत्री बनाया। पिछले 10 साल के राजनीतिक सफर में स्मृति ईरानी देश की अल्पसंख्यक कार्य मंत्री, महिला एवं बाल विकास मंत्री, कपड़ा मंत्री, सूचना एवं प्रसारण मंत्री रह चुकी हैं।  

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