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उत्तराखंड

 सिंगली में सुबह से पसर जाती है खौफ की चादर, शाम चार बजते ही लग जाता है ‘कर्फ्यू’

शौचालय जाने के लिए भी लोग घरों से बाहर नहीं निकलते हैं। नौकरी-पेशा लोग शाम को घर नहीं लौट पाते। घटना के बाद से गांववालों की जिंदगी शाम 4 बजे ही थम जाती है। आखिर ऐसा कब तक चलेगा?

अपने कलेजे के टुकड़े को गंवाने के बाद सिंगली गांव गम से उबर नहीं पा रहा है। गुलदार के हमले में ढाई साल के मासूम आयांश की मौत के बाद से घर में चूल्हा बुझा पड़ा है। घर के बाहर ग्रामीणों से लेकर रिश्तेदारों व करीबियों का जमावड़ा लगा है। पास के खाली पड़े प्लॉट में वन विभाग की टीम बैठी है जिसकी नजर पिंजरों पर है।

आयांश के दादा मदन के पास ग्रामीणों की भीड़ बैठी है। उसकी मां चंदा के पास महिलाओं का समूह बैठा है। यहां बैठे लोगों और महिलाओं में बच्चे को खोने का जितना गम है उतना ही रोष भी है। रोष है वन विभाग की कार्यप्रणाली पर। सब एक सुर में यही कह रहे थे कि मंगलवार की रात हादसा हुआ और अब तक वन विभाग खाली हाथ है। टीम पिंजरे में गुलदार के आने का इंतजार कर रही है और गुलदार कई बार दिख चुका है।

शौच भी नहीं जा रहे लोग
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि शाम को 4 बजते ही गांव में कर्फ्यू लगा दिया जाता है। वन विभाग की टीम ग्रामीणों को घरों में कैद कर देती है।

जंगल में है आयांश का घर
गल्जवाड़ी से घने जंगलों के रास्ते आगे करीब दो किमी चलने के बाद मुख्य मार्ग पर एक मंदिर है। यहां से करीब 700 मीटर निचले रास्ते पर जंगलों के बीच ऊंचे चबूतरे पर आयांश का घर है। तीन छोटी सीढ़यां चढ़ने पर आयांश के घर में दाखिला होता है। आयांश की दादी पूनम के आंसू सूख चुके हैं लेकिन उनकी सिसकियां साथ नहीं छोड़ रही हैं।

दादी बताती हैं कि मेरा पोता आयांश मंगलवार की रात इन्हीं सीढ़ियों पर था। वह मां के साथ कमरे में सोने जा रहा था, पर घर के बाहर भरपूर रोशनी थी। सामने लगे पोल में भी लाइट जल रही थी। आयांश ने अपनी मां से कहा, मम्मा आप चलो, मैं आ रहा हूं। दोनों निकलकर अंदर कमरे में जा रहे थे, तभी घात लगाकर आए गुलदार ने आयांश को सीढ़ियों से उठा लिया। मौसी सुनीता कहती हैं कि रात में गुलदार बच्चे के पास ही था। हमारा तो बच्चा गया, अब गुलदार बचना नहीं चाहिए। सरकार वन विभाग के अफसरों को गुलदार को मारने की अनुमति दे। इसके कारण गांव के बच्चे असुरक्षित हैं।

सुबह सतीश के घर के पास दिखा गुलदार, शाम को फिर नजर आया
परिवार की सदस्य सुनीता प्रकाश बताती हैं कि गुलदार कहीं गया नहीं है, वह घर के इर्द-गिर्द अब भी घूम रहा है। वारदात के बाद से लगातार गांव के लोगों को यह नजर आ रहा है। बृहस्पतिवार सुबह 5 बजे पड़ोस में स्थित सतीश के घर के पास उसे देखा गया। इस घर में तीन परिवार रहते हैं जिनमें कई बच्चे भी हैं। बृहस्पतिवार को ही शाम 4 बजे गांव के पूनम और दीपक ने गुलदार को घर के पास देखा गया। आसपास के इलाके से भी जो लोग मिलने आ रहे हैं, उनमें से कई को गुलदार नजर आ चुका है। दादा मदन बताते हैं कि गुलदार के पगमार्क लगातार घर के आसपास मिल रहे हैं। बड़े फुटमार्क के अलावा छोटे पगमार्क भी देखे गए हैं। इससे यह प्रतीत हो रहा है कि गुलदार के साथ उसके बच्चे भी हैं। इसीलिए गुलदार इस इलाके को छोड़ नहीं रहा है।

बच्चों को दूसरे रास्ते भेज रहे विद्यालय
आयांश के चाचा अभिलाष बताते हैं कि गांव में खतरा अभी टला नहीं है। गुलदार के डर से गांव में हर किसी की जिंदगी ठहर गई है। सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को है। बच्चों को स्कूल न भेजें तो पढ़ाई प्रभावित होती है। मजबूरन पास के गांव गज्लवाड़ी और गुलियान स्थित इंटर कॉलेज में बच्चों को जंगल के रास्ते भेजना पड़ रहा है। कई बच्चे एक साथ दल बनाकर स्कूल जा रहे हैं।

कई लोग एकसाथ होते तब लौटते हैं गांव
घटना के बाद से गांव के लोगों के रोजी रोजगार भी प्रभावित हो गए हैं। गांव के अधिकांश लोग जबकि कई लोग आसपास के संस्थानों में गार्ड की नौकरी करते हैं। इन सभी लोगों को देर शाम लौटना होता है। गुलदार की दहशत के बाद यह सभी लोग डरे हुए हैं। साइकिल से अकेले वापस लौटना इनके लिए खतरों से भरा है। ग्रामीण बताते हैं, शाम को पांच-सात लोग एकसाथ हो जाते हैं, तब वह शहर से सिंगली वापस लौटते हैं।

रात में एकसाथ सोते कई परिवार
आयांश की नानी बामो देनी कहती हैं, सिंगली में पहली बार ऐसी कोई घटना हुई है। इससे पहले गुलदार कुत्ते को तो ले गया, लेकिन बच्चे को ले जाने की घटना पहली बार हुई है। यहां जाल लगाने से कोई लाभ नहीं हो रहा है। जाल में गुलदार आ नहीं रहा है और रात में परिवारों को डर लग रहा है। लोगों की रात की नींद उड़ चुकी है, कई परिवार एक साथ सो रहे हैं।कहा कि बच्चे का दुख असहनीय है, सरकार कुछ भी करे, गुलदार को पकड़े या उसे आदमखोर घोषित कर गोली मारने के आदेश दे।

अब खुद पहरा देंगे गांव के पुरुष
गांव के पुरुषों का कहना है कि अब हम वन विभाग की टीम के भरोसे नहीं रहेंगे। हम खुद घर के बाहर बैठेंगे। वनकर्मी बगैर हथियार के यहां पर मोर्चा ले रहे हैं। अब ग्रामीण खुद लोहा लेंगे और गांव में पहरा देंगे। कहा, घरों के आसपास जंगल को साफ किया जाना चाहिए। बच्चों के स्कूल जाने के लिए बस की व्यवस्था की जाए ताकि बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई खतरा न हो।

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