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धर्मसंस्कृति

क्या महिलाएं भी कर सकती हैं पिंडदान? जानिए क्या कहते हैं शास्त्र

हिंदू धर्म में श्राद्ध और पिंडदान का बहुत महत्व है। श्राद्ध पक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। मान्यता है कि मृत्यु के बाद जिन लोगों का श्राद्ध और पिंडदान नहीं किया जाता है, उनको दूसरे लोकों में काफी ज्यादा कष्ट और दुखों का सामना करना पड़ता है। यही वजह है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। श्राद्ध और पिंडदान से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों को दीर्घायु, वंशवृद्धि व अनेक प्रकार के आशीर्वाद देकर पितृलोक लौट जाते हैं। ज्यादातर पिंडदान और श्राद्ध पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। 

इन हालात में महिलाएं भी करती हैं श्राद्ध और पिंडदान

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिस घर में पुत्र नहीं होते उस घर की महिलाएं श्राद्ध कर्म और पिंडदान कर सकती हैं। गरुड़ पुराण में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है। गरुड़ पुराण के अनुसार जिस व्यक्ति का कोई पुत्र नहीं है तो ऐसी स्थिति में कन्याएं अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान करती हैं।

प्रसन्न होते हैं पितृ

मान्यता है कि अगर कन्याएं श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान करती हैं, तो पितर उसे स्वीकार कर लेते हैं और कन्या को आशीर्वाद देते हैं। कन्या के अलावा बहु या फिर पत्नी भी श्राद्ध और पिंडदान कर सकती हैं।

प्रसन्न होते हैं पितृ

मान्यता है कि अगर कन्याएं श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान करती हैं, तो पितर उसे स्वीकार कर लेते हैं और कन्या को आशीर्वाद देते हैं। कन्या के अलावा बहु या फिर पत्नी भी श्राद्ध और पिंडदान कर सकती हैं।

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