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उत्तराखंड

चीन है कि बाज नहीं आ रहा, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने की जरूरत

चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसे अलग-थलग करने की कोशिश करनी चाहिए।

पिछले कुछ समय से चीन बार-बार भारत के अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत के नाम से पुकार कर भारत के साथ तनाव की स्थिति पैदा करना चाह रहा है। हालांकि भारत सरकार ने बार-बार इसका खंडन करते हुए दुनिया को बताया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अटूट अंग है। अमेरिका ने भी कड़े शब्दों में चीन को चेताते हुए कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन चीन अपने रवैये से बाज नहीं आ रहा है।

बीते आठ मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में सड़क संचार को बेहतर बनाने के लिए वहां पर सेला सुरंग मार्ग का उद्घाटन किया था। इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए चीन ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अरुणाचल प्रदेश में इस तरह के कार्य नहीं करने चाहिए, क्योंकि यह दक्षिणी तिब्बत का क्षेत्र है। चीन के इस दावे का भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कड़े शब्दों में खंडन किया है और अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को दोहराया है।

कहने को तो चीन में कम्युनिस्ट शासन है, परंतु वास्तव में चीन में शी जिनपिंग की सरकार अब भी सामंतशाही प्रणाली की तरह काम कर रही है, जिसके कारण चीन की जनता त्रस्त है और वहां पर चारों तरफ तनाव देखने को मिलता है। अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन ने पड़ोसी देशों की भूमि पर कब्जा करना शुरू किया और 1951 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इसी नीति के तहत चीन ने अपने 16 पड़ोसी देशों की भूमियों पर अवैध कब्जे किए हैं।

जब भी हमारी सरकार अरुणाचल प्रदेश में कोई भी विकास कार्य करती है, चीन आपत्ति जताने लगता है। लेकिन इस बार भारत के दावे की पुष्टि अमेरिका जैसी महाशक्ति देश ने भी की है और बहुत से पश्चिमी देश भी भारत के पक्ष में हैं। चीन और भारत के बीच में 3,488 किलोमीटर की सीमा है, जिनमें 1,597 किलोमीटर पूर्वी लद्दाख, 544 किलोमीटर हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड, 220 किलोमीटर सिक्किम तथा 1,126 किलोमीटर अरुणाचल प्रदेश में है! अरुणाचल की सीमा का अधिकांश भाग तिब्बत से सटा हुआ है! चीन के साथ लंबे समय से हमारा सीमा विवाद चल रहा है, जिसे चीन सुलझाना नहीं चाह रहा है।

इसी के चलते चीन ने अक्तूबर 1962 में भारत पर हमला कर दिया, जिसके लिए भारतीय सेना तैयार न थी। नतीजतन भारत के अक्साई चिन क्षेत्र में 38,000 वर्ग किलोमीटर पर चीन ने अवैध कब्जा कर लिया, जिस पर वह आज तक कायम है! इसके बाद सिक्किम के नाथुला पर 1967 में चीन ने हमला किया, जिसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। फिर 1986 में अरुणाचल के सोमद्रोंचू नाम के क्षेत्र में चीन ने एक हेलीपैड बनाने की कोशिश की, जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया! इसके बाद भारत सरकार ने इस पूरे क्षेत्र में सड़क और पुलों का निर्माण किया, ताकि सेना के टैंक सीमा तक पहुंच सकें!

सोमद्रोंचू की झड़प के बाद भारत और चीन के बीच तनाव कम करने के लिए वार्ताएं शुरू हुईं और 1993 एवं 1996 में चीन के साथ सीमाओं पर शांति बहाली के लिए समझौते किए गए! इन समझौतों में यह तय किया गया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास दोनों देशों के सैनिक बिना हथियारों के ही निगरानी करेंगे! लेकिन चीन बार-बार इसका उल्लंघन करता रहा है! हालांकि भारत ने चीन से लगती सीमा क्षेत्र में अपनी सैन्य तैयारी मजबूत की है और हवाई पट्टी, सड़क एवं पुलों का निर्माण किया है।

दक्षिणी चीन सागर और हिंद महासागर में चीन की नौसैनिक गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड गठबंधन किया है। चीन भली-भांति भारत की तैयारी के बारे में जान चुका है, फिर भी वह समय-समय पर भारत से उलझने से बाज नहीं आ रहा है। जब तक चीन का कब्जा तिब्बत पर बना रहेगा, तब तक वह पूरे दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश और म्यांमार के लिए खतरा बना रहेगा।

इसलिए भारत को मजबूती से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तिब्बत पर चीन के गैरकानूनी कब्जे के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए! चीन को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करने से उसकी अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा, जिसके दम पर वह एशियाई देशों को अपनी कर्ज नीति के जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा है। ऐसा करने पर ही चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगाया जा सकता है।

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