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उत्तराखंड

तपते द्वीप में बदलते शहर…, शहरों की तरफ बढ़ते पलायन को रोकना ही होगा; यही दूरगामी उपाय

कार्य अधि में बदलाव, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, पर्यावरण अनुकूल इमारतों का निर्माण डैसे उपायों से गर्मी के असर को कम किया जा सकता है।

अप्रैल शुरू होते ही एक तरफ मौसम विभाग ने चेताया कि गर्मी और लू का असर झेलने के लिए तैयार हो जाएं, तो दूसरी तरफ केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग ने भी राज्यों को बता दिया है कि बढ़ती गर्मी पर निगाह रखें और लोगों को इससे सतर्क रहने के लिए जागरूक करें। गंगा-यमुना के मैदानी इलाकों में लू का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है, खासकर यहां शहरों में तपन का एहसास समय से पहले और सीमा से अधिक है।

खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जो कई छोटी-मंझोली नदियों का घर है और कभी घने जंगलों  के लिए जाना जाता था, बुंदेलखंड की तरह तीखी गर्मी की चपेट में है। हरित प्रदेश कहलाने वाला यह इलाका आने वाले दशकों में बुंदेलखंड की तरह सूखे-पलायन-निर्वनीकरण का शिकार हो सकता है। जिन क्षेत्रों में शहरीकरण का विस्तार तेजी से हुआ, वहां लू और गर्मी का विस्तार अधिक हुआ।

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, देश के अलग-अलग हिस्सों में अब हर साल लगभग 272 दिनों को ‘लू – दिन’ के रूप में दर्ज किया जा रहा है। तकनीकी भाषा में इसे ‘अर्बन हीट आइलैंड’ अर्थात शहरी ताप द्वीप कहा जा सकता है। जब किसी शहर में आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले तापमान अधिक बढ़ जाता है, तो उसे अर्बन हीट आइलैंड कहते हैं। ऊंची इमारतें, छायादार पेड़ों की कमी, जल-निधियों जैसे तालाब-जोहड़ और नदी के दायरे का घटना-ऐसे कारण हैं, जो शहर में गर्मी की मार को जानलेवा बना देते हैं। इसके कुप्रभावों को चौगुना करने में कंकरीट से बनी ऊंची इमारतें, एयरकंडीशनर से निकलने वाली गर्मी, वाहनों से उत्सर्जित ऊष्मा और यातायात थमने से उपजी गैस भी शहरों को तपा रही हैं।

जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट-2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में भीषण गर्मी के चलते भारत में सेवा, विनिर्माण, खेती और निर्माण क्षेत्रों में लगभग 13 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। गर्मी बढ़ने से 167 अरब घंटे संभावित श्रम का नुकसान हुआ, जो वर्ष 1999 के मुकाबले 39 प्रतिशत अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में डेढ़ फीसदी इजाफा होने पर बाढ़ से हर साल होने वाला नुकसान 49 प्रतिशत बढ़ सकता है। गर्मी बढ़ेगी, तो समुद्र का तापमान भी बढ़ेगा और इससे उपजने वाले चक्रवात से होने वाली तबाही में भी इजाफा होगा।

जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट-2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में भीषण गर्मी के चलते भारत में सेवा, विनिर्माण, खेती और निर्माण क्षेत्रों में लगभग 13 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। गर्मी बढ़ने से 167 अरब घंटे संभावित श्रम का नुकसान हुआ, जो वर्ष 1999 के मुकाबले 39 प्रतिशत अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में डेढ़ फीसदी इजाफा होने पर बाढ़ से हर साल होने वाला नुकसान 49 प्रतिशत बढ़ सकता है। गर्मी बढ़ेगी, तो समुद्र का तापमान भी बढ़ेगा और इससे उपजने वाले चक्रवात से होने वाली तबाही में भी इजाफा होगा।

शहरों का बढ़ता तापमान न केवल पर्यावरणीय संकट बढ़ाएगा, बल्कि सामाजिक-आर्थिक त्रासदी और असमानता का कारक भी बनेगा। गर्मी सिर्फ स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करती, बल्कि इससे इंसान की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। गर्मी बढ़ने पर पानी, बिजली की मांग के साथ उत्पादन लागत भी बढ़ती है। अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शीर्ष वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के मुताबिक, बढ़ती आबादी और गर्मी के कारण देश के चार बड़े शहर-दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाहरी भीड़ को नहीं रोका गया, तो तापमान तेजी से बढ़ेगा, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित होगा।

ऐसे में जरूरी है कि शहरों में रहने वाले श्रमजीवियों को लू-गर्मी के कुप्रभावों से बचाने के लिए अनुकूल परिवेश और कार्य समय निर्धारित किया जाए। मजबूरी में खुले में काम करने वाले लोगों के लिए छांव, साफ पानी की व्यवस्था होनी चाहिए, जिसके लिए सरकार एवं समाज, दोनों को साथ आना होगा। उमस भरी गर्मी और लू से राहत के लिए अधिक छायादार पेड़ों को लगाना जरूरी है। शहर के बीच से बहने वाली नदियां, तालाब, जोहड़ आदि यदि निर्मल और अविरल रहेंगे, तो ये गर्मी सोखने में सक्षम होंगे। कार्यालयों के समय में बदलाव, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, बहुमंजिला भवनों को पर्यावरण अनुकूल बनाना, ऊर्जा संचयन सहित कुछ ऐसे उपाय हैं, जो कम लागत में शहरों को भट्ठी बनने से बचा सकते हैं। दूरगामी उपाय के तहत शहरों की तरफ बढ़ रहे पलायन को रोकना ही होगा।

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