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उत्तराखंड

 चुनाव, मजदूर और चिलचिलाती गर्मी… असंगठित क्षेत्र सबसे अधिक असुरक्षित, मजबूत नियामक ढांचा समय की मांग

प्रचंड गर्मी से असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर सबसे ज्यादा असुरक्षित होते हैं। लेकिन दुखद है कि लाखों भारतीयों के जीवन और आजीविका को प्रभावित करने वाला यह मुद्दा चुनावी चर्चा से बाहर है। सुरक्षा मानकों को लागू करने और श्रमिकों को मौसमी खतरों से बचाने के लिए मजबूत नियामक ढांचा जरूरी है।

भीषण गर्मी से झुलसते हुए जोधपुर में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने नगर निगम के सहयोग से अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों के लिए एक कूलिंग स्टेशन बनाया है। इस कूलिंग स्टेशन का उद्देश्य चिलचिलाती गर्मी में शहरी गरीबों को आश्रय देना है। यह जोधपुर के हीट ऐक्शन प्लान का हिस्सा है। दिलचस्प बात यह है कि इसमें ठंडक बढ़ाने के लिए पारंपरिक तरीकों को अपनाया गया है, जैसे खस से बने पैनल, सोलर पैनल से चलने वाले बल्ब और पंखे तथा फुहार के लिए स्प्रिंकलर। यहां पीने का पानी, प्राथमिक चिकित्सा (फर्स्ट एड) किट भी उपलब्ध है।

ऐसे समय में जब बड़े शहरों में रहने वाले लोगों सहित ज्यादातर भारतीय परिवारों के पास हर कमरे में एयर कंडीशनर (एसी) नहीं है, जोधपुर का यह प्रयोग बेहद दिलचस्प है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के दौर में अत्यधिक गर्मी, मौसम में उतार-चढ़ाव पूरे भारत और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में श्रमिकों की सुरक्षा के लिए वास्तविक खतरा है। ज्यादातर लोग इस भीषण गर्मी में एयरकंडीशनर का इंतजाम नहीं कर सकते। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में यह अब भी चुनावी मुद्दा नहीं बन सका है, जबकि इसके प्रभाव स्पष्ट हैं। हाल में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सहायक महानिदेशक और एशिया और प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक चिहोको असदा मियाकावा ने बताया कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में श्रमिकों को प्रचंड गर्मी से लेकर खराब वायु गुणवत्ता तक का सामना करना पड़ता है और इसके प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ता है। अक्सर पर्याप्त सुरक्षा के बिना काम करते रहने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं होता, भले ही स्थितियां कितनी ही खतरनाक हों।

भीषण गर्मी शायद सबसे स्पष्ट चुनौती है और इस बारे में मियाकावा ने कहा कि बढ़ते तापमान में जैसे कृषि, निर्माण, मछली पकड़ने और परिवहन जैसे बाहरी काम करने वाले श्रमिकों को गर्मी से संबंधित बीमारियों और लू का खतरा रहता है। यहां तक कि घर के अंदर काम करने वाले उन श्रमिकों को भी खतरा रहता है, जहां भीषण गर्मी हो और वेंटिलेशन की व्यवस्था न हो। फैक्टरियों, खाद्य प्रसंस्करण संयंत्रों, ईंट भट्ठों और गोदामों में तेज धूप के दौरान काम करना श्रमिकों के लिए काफी खतरनाक हो सकता है।

बेहतर नियमन, प्रवर्तन, शमन रणनीतियों, प्रशिक्षण और जागरूकता से स्थितियों में काफी बदलाव लाया जा सकता है। स्पष्ट है कि इसके लिए श्रमिकों का सशक्तीकरण जरूरी है, जो उन्हें नौकरी या मजदूरी खोने के डर के बिना प्रचंड गर्मी में काम रोकने की अनुमति प्रदान करे। लेकिन भारत जैसे देश में ऐसा कहना आसान है, करना कठिन, जहां ज्यादातर लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जिन्हें न तो रोजगार अनुबंध और न ही स्वास्थ्य संबंधी सहयोग उपलब्ध है। 

मियाकावा लिखते हैं कि ‘जलवायु परिवर्तन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ने से श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बीजिंग, नई दिल्ली और बैंकॉक में खराब वायु गुणवत्ता दैनिक वास्तविकता है, जो प्रदूषकों के संपर्क में आने वाले श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है। आदर्श रूप में इन मूल कारणों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। डिलीवरी बॉय या सड़क के किनारे ठेला लगाने वाले को पूरे दिन जहरीली हवा में सांस लेना पड़ता है। इसलिए जागरूकता, रक्षा उपकरण और जहां तक संभव हो सके, काम करने के तरीके में बदलाव की आवश्यकता है, जो इसके प्रभाव को न्यूनतम कर सके।’

प्रचंड गर्मी और वायु प्रदूषण के अलावा, चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता में भी बढ़ोतरी हो रही है, जो कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त चुनौती पेश करती है। चक्रवात, बाढ़, सूखा, दावानल, प्राकृतिक आपदाएं कामकाज में व्यवधान पैदा करती हैं और श्रमिकों के जीवन को जोखिम में डालती हैं। मियाकावा लिखते हैं कि आपदाओं के बाद ‘पहले की स्थिति की बहाली के प्रयासों में श्रमिकों की सुरक्षा एवं कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए तथा आवश्यक सेवाओं, सुरक्षात्मक उपकरणों और मनोसामाजिक समर्थन तक उनकी पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए।’ 

भारत विशेष रूप से संवेदनशील है। पिछले वर्ष फोर्ब्स मैगजीन ने लिखा था, ‘निर्माण गतिविधियों के साथ भारतीय कृषि और उद्योग विशेष रूप से गर्मी से संबंधित तनावों के कारण श्रमिकों की उत्पादकता के नुकसान के प्रति संवेदनशील हैं। विश्व बैंक के अनुसार, 2030 तक गर्मी के तनाव के कारण उत्पादकता के नुकसान के चलते अनुमानित 8 करोड़ वैश्विक नौकरियों में से 3.4 करोड़ रोजगार की हानि भारत में हो सकती है।’ फोर्ब्स मैगजीन में बताया गया कि ‘रिजर्व बैंक के आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग (डीईपीआर) ने मुद्रा एवं वित्त 2022-23 संबंधी अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया कि भारत में बढ़ते तापमान और मानसूनी वर्षा के बदलते पैटर्न के कारण जलवायु परिवर्तन से अर्थव्यवस्था को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.8 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है और 2050 तक भारत की लगभग आधी आबादी के जीवन स्तर में गिरावट आ सकती है। पर्याप्त शमन नीतियों के अभाव में जलवायु परिवर्तन से भारत को 2100 तक सालाना जीडीपी का लगभग 3 से 10 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है।’

प्रचंड गर्मी से सभी समान रूप से प्रभावित नहीं होते हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले, प्रवासी मजदूर और हाशिये पर रहने वाले लोग सबसे ज्यादा असुरक्षित होते हैं। महिलाएं भी व्यापक रूप से प्रभावित होती हैं। इसी वजह से हाइपर-लोकल ऐक्शन प्लान बनाना महत्वपूर्ण है, जो जोधपुर जैसे क्षेत्रों में कमजोर लोगों पर ध्यान केंद्रित करता है।

यह बेहद अफसोसनाक है कि लाखों भारतीयों के जीवन और आजीविका को प्रभावित करने वाले यह मुद्दा भारत की चुनावी चर्चा से बाहर है। लेकिन मतदान करते वक्त भारत के लोगों को उन उम्मीदवारों को ध्यान में रखना चाहिए, जो इन मुद्दों के प्रति संवेदनशील हैं और जिन्होंने इसमें दिलचस्पी दिखाई है। जीडीपी में वृद्धि निस्संदेह महत्वपूर्ण है, लेकिन हमारे राष्ट्रीय विमर्श को मजबूत नियामक ढांचे पर भी ध्यान देना चाहिए, जो सुरक्षा मानकों को लागू करने और श्रमिकों को जलवायु संबंधी खतरों से बचाने के लिए जरूरी हैं

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