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उत्तराखंड

 उड़ान भी अब बदल गई है… और उड़ने वालों की जमात भी

कुछ दशक पहले तक भारत में विमान से यात्रा करना मध्यवर्गीय भारतीयों के लिए एक ग्लैमरस मामला था और  एयरपोर्ट पर कुछ खास किस्म के चेहरे ही दिखते थे, लेकिन अब आम आदमी से लेकर श्रमिक तक, यानी पूरा भारत दिखता है, जो एक सुखद अहसास है।

कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने 1950 के दशक में अपनी वारसॉ की विमान यात्रा के बारे में लिखा था। कौतुहल और भय से भरा हुआ उनका गद्य उड़ान की व्याकुलता के बारे में था, जिसे एयर इंडिया की पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। उस गद्य में उड़ान के अनुभव के बारे में उन्होंने अपनी भावनाओं को साझा किया था, जो दशकों बाद भी मेरे दिमाग में गूंजती हैं। उन्होंने लिखा था- ‘हवाई यात्रा, स्वभाव से ही जरा संकट की यात्रा होती है और मुझ जैसे डरपोक लोग जब भी हवाई जहाज पर कदम धरते हैं, वे यह सोच लेते हैं कि अब तक जो जी लिया, अब अगर आगे भी जीना होगा, तो जहाज सकुशल धरती पर लौट आएगा।’ वैसे तो दिनकर जी की तरह मैं भी एक डरपोक किस्म की इंसान हूं। हालांकि कई वर्षों पहले की बात है, जब मैंने दिल्ली से देहरादून के लिए एक घरेलू उड़ान ली थी। यह मेरी एक छोटी-सी विमान यात्रा थी, क्योंकि उड़ान भरने के कोई 10 मिनट बाद ही कैप्टन ने घोषणा की और केबिन क्रू को लैंडिंग के लिए तैयार होने के लिए कहा। कह सकती हूं कि यह मेरी एक सर्वश्रेष्ठ उड़ान थी।

मेरी घेरलू सहायिका भी मेरे साथ पहली बार विमान से यात्रा कर रही थी और वह मेरी बगल में बैठी थी। उड़ान के दौरान वह बहुत सहज महसूस कर रही थी, उसका यह रवैया ठीक मेरे विपरीत था, जबकि मैं जब छोटी-सी बच्ची थी, तभी से विमान यात्रा कर रही हूं। वह काफी सहज होकर विमान में परोसे गए भोजन का आनंद ले रही थी, खिड़की के बाहर तैरते हुए बादलों को देख रही थी और जब विमान ने उड़ान भरी या नीचे उतरने लगा, तो उसे अपने पेट में किसी प्रकार की हलचल महसूस नहीं हुई। कहने की जरूरत नहीं है कि उसका अनुभव मेरे अनुभव से बिल्कुल अलग था!

हवाई यात्रा के दौरान मेरी घरेलू सहायिका ने एक बात जो नोटिस की और जिसकी तरफ उसने मेरा ध्यान दिलाया, वह थी हवाई अड्डे पर मौजूद अन्य यात्री, जो हवाई यात्रा कर रहे थे। इस बात ने उसे काफी आश्चर्यचकित किया, क्योंकि उसने मेरा ध्यान बिहारी मजदूरों के एक समूह की ओर दिलाया, जो दूसरे काउंटर पर अपनी पोटली की जांच करवा रहे थे। मेरी घरेलू सहायिका को यह सब देखकर विश्वास नहीं हो रहा था, क्योंकि उसने हवाई अड्डे पर ऐसे लोगों को देखने की कभी उम्मीद नहीं की थी। हालांकि समय के साथ चीजें बहुत बदल गई हैं। जो काफी बूढ़े लोग हैं, वे याद कर सकते हैं कि कैसे कुछ दशक पहले तक भारत में विमान से यात्रा करना मध्यवर्गीय भारतीयों के लिए एक ग्लैमरस मामला था। पहले जो लोग हवाई जहाज से यात्रा करते थे, वे अपनी उड़ानों के लिए अच्छे कपड़े पहनते थे। यात्रा के बाद उनके रवैये में एक खास तरह का बदलाव आ जाता था और उनकी खुशबू अलग होती थी। यह एक वर्गीय भावना थी। इकनॉमी क्लास में भी यात्रा केवल उच्च वर्ग के लोग ही करते थे। उदारीकरण ने और अधिक एयरलाइनों के लिए आसमां खोल दिया, लेकिन विमान यात्रा करना अब भी सभी के लिए आसान नहीं था, खासकर कड़ी मेहनत करने वाले उन बिहार के मजदूरों के लिए, जो छुट्टी में अपने घर लौट रहे थे।

लेकिन वर्ष 2014 के बाद मोदी सरकार के प्रयासों से हवाई मार्गों और हवाई अड्डों के खुलने के साथ-साथ हवाई जहाजों के प्रतिस्पर्धी किरायों ने हवाई यात्रा को आम लोगों के लिए और अधिक सुलभ बना दिया है और हम सभी को इस बात पर गर्व महसूस करना चाहिए, यहां तक कि उन लोगों को भी, जो हवाई यात्रा करने से डरते हैं। हालांकि रेल से यात्रा करना पसंद करने के बावजूद मेरा मानना है कि नई वंदे भारत ट्रेन की सीटें किसी भी एयरलाइन की सीटों से कहीं अधिक आरामदेह हैं। पर मोदी सरकार के इस परिवर्तनकारी दृष्टिकोण से अलग जो उल्लेखनीय बात है, वह है सामान्य, कामकाजी वर्ग का आत्मविश्वास। और सिर्फ मध्यवर्गीय भारतीयों में ही नहीं, बल्कि श्रमिक वर्ग में भी उड़ान को लेकर यह आत्मविश्वास आया है।

चेक-इन के समय की औपचारिकताओं को पूरा करने में मुझे अपनी घरेलू सहायिका की मदद करनी पड़ी। लेकिन उसने मुझे आश्वस्त किया कि अगली बार वह अपना आधार कार्ड और टिकट अपने हाथ में रखेगी और अकेले यात्रा करने में सक्षम होगी, क्योंकि चेक-इन प्रक्रिया सुव्यवस्थित और सहज थी, जिससे उसे अब कोई डर नहीं लगता था।

रेल से यात्रा करना पसंद करने के बावजूद मुझे स्वीकार करना होगा कि यदि आप समय से पहले पहुंच जाते हैं, तो हवाई यात्रा में ट्रेनों में होने वाली अव्यवस्था नहीं होती है। हालांकि, श्रमिक वर्ग के रवैये में यह आत्मविश्वास, जिसमें उनकी पोटली और अन्य सामान की जांच करने वाले श्रमिकों का समूह भी शामिल है, एक गरिमा और गतिशीलता का संकेत देता है, जो हमारे देश के हवाई अड्डों पर शायद ही कभी देखा जाता था।

मुझे लगभग बारह-तेरह साल पहले की बात याद आती है, जब मैंने मध्य पूर्व की यात्रा की थी, तब मैंने देखा कि हमारे देश के बहुत से लोग हवाई अड्डे पर उतरते समय एक साथ इकट्ठा हो गए थे और उन्हें अपनी आव्रजन सुविधाओं के लिए एक कोने में बैठा दिया गया था, वे वहां मजदूरों के रूप में काम करने के लिए गए थे। मुझे उन लोगों का मवेशियों की तरह झुंड बनाना, उनके भ्रमित चेहरे और उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार बहुत परेशान करने वाला लगा। मैंने भारत में अंतरराष्ट्रीय चेक-इन काउंटर पर एक व्यक्ति की मदद की थी, और जब वह दूसरों के साथ बैठा, तो उसने उनसे नजरें भी नहीं मिलाईं। इस प्रक्रिया में गरिमा का पूरी तरह अभाव दिखा। अंतरराष्ट्रीय उड़ान की तो बात ही छोड़ दें, यह उन सभी के लिए पहली उड़ान थी।

किसी अनजान मुल्क में होने, विमान से यात्रा करने और फिर विदेशी भाषा की सीमित जानकारी के साथ वहां की सरकार की जांच-प्रक्रिया से संबंधित संयुक्त आतंक के प्रति मैं सहानुभूति रखती हूं। इसने मेरा दिल तोड़ दिया। इसलिए अपने देश में इतने सारे श्रमिकों को विमान यात्रा करते देखकर मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत खुशी हुई। बेशक अधिकांश उड़ानें कम समय की रही हों, लेकिन यह एक लंबी छलांग है, जब उन लोगों के आत्मविश्वास और सम्मान की बात आती है, जो कठिन मेहनत करते हैं।

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