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उत्तराखंड

 सुख, संपन्नता सब कुछ था, पर धर्म के लिए बन गए संत, प्रेरणादायी है इनकी कहानी

तमाम ऐसे युवा संत हैं, जिन्होंने कम उम्र में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर संन्यास लिया और अब समाजसेवा के साथ ही धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहे हैं।  

परिवार में सुख और संपन्नता सहित सब कुछ है। एमए, ट्रिपल एमए तक पढ़ाई भी की है। इसके बाद भी धर्म की खातिर कई युवाओं ने संन्यास की राह चुनी। धर्मनगरी में तमाम ऐसे युवा संत हैं, जिन्होंने कम उम्र में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर संन्यास लिया और अब समाजसेवा के साथ ही धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहे हैं।  

एमए पास कर संत बने महंत शिवम
महंत शिवम ने योग विषय से एमए किया है। उन्होंने युवा अवस्था में आते ही संन्यास लिया और संत बन गए। बताते हैं कि गुरु परंपरा को देखते हुए उन्होंने संन्यास की राह अपनाई। संत बनकर अपने जीवन को जानना और लोगों का मार्गदर्शन कर उनकी सेवा करना ही उनका उद्देश्य है।

गुरु को देख खुद भी ले लिया संन्यास : शास्त्री
स्वामी रविदेव शास्त्री ने ट्रिपल एमए किया है। उन्होंने बताया कि किशोरावस्था में परिवार से अलग होने के बाद वह अपने गुरु की सेवा में लग गए। गुरु को ही देखकर उन्होंने संत बनने का निर्णय लिया। कहा, राष्ट्रहित, समाज हित और धर्म की रक्षा के लिए संन्यास लिया है।

पढ़ाई करते-करते संत बन गए ओमानंद
महंत ओमानंद अभी संस्कृत से ग्रेजुएशन कर रहे हैं। उन्होंने तीन साल पहले ही संन्यास लिया और संत बने। महंत ओमानंद ने बताया, युवा पीढ़ी को आईएएस, पीसीएस, डॉक्टर आदि की तरफ भागते हुए कॅरिअर बनाने की होड़ देखी। इस सबके बीच उन्होंने ठाना कि उन्हें संत बनना है। बताया, अपनी संस्कृति को बचाना भी हमारा कर्तव्य है।

सनातन की रक्षा उद्देश्य : विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद ने बताया, उन्होंने एमए वेदांताचार्य किया हुआ है। उन्होंने सनातन की रक्षा के लिए किशोरावस्था में ही संत बनने की ठान ली थी। बताया, भटक रहे लोगों को सही राह दिखाना और हिंदुत्व, सनातन के प्रति लोगों को जोड़ना ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है।

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