11 खिलाड़ियों की मौत का इस्राइल ने लिया था बदला,
इस्राइल पर हमास के हमले में हजारों लोगों की जान जा चुकी है। इस्राइल में एक हजार से ज्यादा लोग गंवा चुके हैं। वहीं, गाजा पट्टी में भी मौत का आंकड़ा इसी के करीब है। इस्राइल के अस्तित्व में आने के साथ ही पड़ोसी देशों के साथ इस देश के संबंध अच्छे नहीं रहे हैं, लेकिन यह सिर्फ दूसरा मौका है, जब इस देश पर इतना बड़ा हमला हुआ है। इस हमले के बाद इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद पर सवाल खड़े हो रहे हैं। हालांकि, मोसाद दुनिया की सबसे खतरनाक एजेंसियों में गिनी जाती है और जवाब में यह हमास के आतंकियों पर ताबड़तोड़ हमले कर रही है। यहां हम 1972 ओलंपिक से जुड़ी कहानी बता रहे हैं, जब मोसाद ने अपने 11 खिलाड़ियों की हत्या करने वाले आतंकियों को दुनिया के कोने-कोने से ढूंढ़कर मारा था।
बात है 1972 की म्यूनिख ओलंपिक की, जब आठ फिलिस्तीनियों आतंकियों ने हमला किया था। इस हमले में दो इस्राइली खिलाड़ियों की मौत हुई थी और नौ खिलाड़ियों को कैद कर लिया गया था। बाद में सभी नौ खिलाड़ियों को मार दिया गया था।
म्यूनिख में मारे गए थे इस्राइली खिलाड़ी
सितंबर 1972 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जर्मनी के म्यूनिख में हो रहा था। 1936 के बर्लिन ओलंपिक के बाद, पहली बार जर्मनी को ओलंपिक का आयोजन दिया गया। इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे इस्राइली खिलाड़ी अपने देश के हालातों के चलते चिंतित थे। ओलंपिक का पहला दिन शांति से निकल गया। चार सितंबर की रात को इस्राइली खिलाड़ी अपने-अपने कमरों में गए। सुबह के करीब चार बजे फिलिस्तीन के आठ आतंकी ओलंपिक खेल गांव की छह फुट ऊंची दीवार फांद कर अंदर घुस गए। आतंकी सीधे उस बिल्डिंग में घुसे जहां इस्राइली खिलाड़ी मौजूद थे। खुद को बचाने की कोशिश में दो खिलाड़ी मारे गए। दो खिलाड़ी बच निकलने में कामयाब हुए और नौ खिलाड़ियों को बंदी बना लिया गया।
सुबह के पांच बजे तक पुलिस ने घेराबंदी शुरू कर दी और खबर पूरी दुनिया में फैल गई। करीब नौ बजे हमलावरों ने अपनी मांग की एक सूची खिड़की से फेंकी, जिसमें इस्राइली जेल से 234 कैदियों और जर्मन जेल से दो कैदियों की रिहाई की बात की गई। काफी समय तक बातचीत हुई, लेकिन इस्राइली सरकार ने किसी भी आतंकी को रिहा करने से मना कर दिया।
शाम तक आंतकी समझ गए कि उनकी मांग पूरी नहीं होगी, तो उन्होंने कायरो, मिस्र जाने के लिए दो प्लेन की मांग रखी। इसके बाद जर्मन पुलिस ने ऑपरेशन सनशाइन को अंजाम देने का सोचा, जिसमें बिल्डिंग को उड़ाने का प्लान था। मगर टीवी के जरिए आतंकियों को इसकी सूचना मिल गई। इसके बाद पुलिस ने उन्हें हवाई अड्डे पर पकड़ने का प्लान बनाया, मगर टीवी के जरिए आतंकियों को इस प्लान के बारे में भी पता चल गया।
रात 10.30 बजे खिलाड़ी और आतंकियों को हेलीकॉप्टर के जरिए एयरपोर्ट तक पहुंचाया गया, जहां जर्मन सिपाही स्नाइपर्स के साथ उनका इंतजार कर रहे थे। इस जाल का जैसे ही आतंकियों को पता चला, उन्होंने जवाबी हमला शुरू कर दिया। दो आतंकी और एक पुलिसकर्मी की मौत हुई। इसके बाद जर्मन सेना पहुंच गई। सेना को देख एक आतंकी ने हेलीकॉप्टर में बैठे चार बंधकों को गोली मार दी और ग्रेनेड फेंका। इसके बाद दूसरे आतंकी ने अपनी मशीन गन से बाकी बंधक खिलाड़ियों को भी मार दिया।
मुठभेढ़ में तीन आतंकियों को मार दिया गया और अन्य तीन को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद इन आतंकियों की बचाने के लिए उनके दो साथियों ने एक प्लेन को हाईजैक कर उनकी रिहाई की मांग की। जर्मनी ने तीनों आतंकियों को रिहा कर दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन तीनों को वहां से लीबिया ले जाया गया था।
‘ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड’
11 ओलंपिक खिलाड़ियों की हत्या का बदला लेने के लिए इस्राइली की प्रधानमंत्री ने एक कमेटी बनाई। कमेटी ने खिलाड़ियों की हत्या में शामिल सभी आतंकियों की सूची बनाई और सभी को मारने का प्लान बनाया। खबरों के अनुसार कमेटी ने 20 से 35 लोगों की एक लिस्ट तैयार की थी। इस लिस्ट में शामिल लोग यूरोप से लेकर मध्य पूर्व तक अलग-अलग देशों में छिपे हुए थे। हर आतंकी को ढूंढ-ढूंढकर मारना था और इस्राइल सरकार सीधे तौर पर यह नहीं कर सकती थी। ऐसे में इसकी जिम्मेदारी मोसाद को दी गई। इस ऑपरेशन का नाम रखा गया ‘रैथ ऑफ गॉड’ यानी ‘ईश्वर का प्रकोप’। ऑपरेशन को लीड कर रहे मोसाद एजेंट माइकल ने पांच अलग-अलग टीम बनाई।
ऑपरेशन ‘रैथ ऑफ गॉड’ की शुरुआत 16 अक्तूबर 1972 को हुई। इसी दिन इटली की राजधानी रोम के एक होटल में वेल जेवेतर नाम के शख्स को मार दिया गया। इस्राइली खिलाड़ियों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों में यह पहली हत्या थी। खबरों के अनुसार जेवेतर रोम में ब्लैक सेप्टेम्बर का चीफ था। इसके बाद आठ दिसंबर को ब्लैक सेप्टेम्बर के लीडर महमूद हमशारी को फ्रांस में मारा गया। हमशारी जब घर से बाहर निकला तो इस्राइली एजेंटों ने उसके टेलीफोन में बम लगा दिया। वापस लौटते ही महमूद के पास फोन आया और जैसे ही उसने रिसीवर उठाया, वैसे ही धमाका हुआ और उसकी मौत हो गई।
इसके बाद लगातार ऐसे ही हमले होते रहे। यह भी कहा जाता है कि मोसाद की तरफ से हर आतंकी को मारने से पहले उसे तोहफा भेजा जाता था, जिसमें लिखा रहता था कि हम न भूलते हैं और न ही माफ करते हैं। मोसाद से डरकर तीन आतंकी लेबनान के एक घर में छिप गए थे। इस्राइली एजेंट बोट से बेरुत पहुंचे और रातोरात बिल्डिंग में घुसकर उन तीनों को मारकर लौट भी आए।
म्यूनिख में जिंदा पकड़े गए तीन आतंकियों की मौत को लेकर कुछ साफ नहीं है। कहा जाता है कि 1972 हमले के कुछ साल बाद इस्राइल ने तीनों की हत्या कर दी थी, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है।