बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा पर भी आए थे भगवान राम, माता सीता से भी जुड़ा है किस्सा
चांई गांव में वेदमती सफेद पत्थर शिला रूप में पूजी जाती है। रामावतार से पूर्व वेदवती ने चांई गांव में तपस्या की थी।रामायणकाल की कई घटनाएं उत्तराखंड के सीमांत चमोली जनपद से भी जुड़ी हुई हैं। अपने जीवन में श्रीराम ने केदारनाथ, बदरीनाथ और कैलाश मानसरोवर की यात्राएं की थी। उन्होंने देवप्रयाग में अलकनंदा के तट पर स्नान किया था और अलकनंंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होते हुए कैलाश मानसरोवर तक की यात्रा की थी। आनंद रामायण में इसका उल्लेख है।
बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि मानसरोवर भारत का अभिन्न अंग रहा है। आनंद रामायण में इसका उल्लेख है। उन्होंने बताया कि भगवान राम ने केदारनाथ, बदरीनाथ और कैलाश मानसरोवर की यात्राएं की थी। जनपद के चांई गांव में स्थित वेदवती माता का मंदिर स्थित है। यह मंदिर भी रामायण से जुड़ा हुआ है। पूर्व धर्माधिकारी ने बताया कि वेदवती माता ही सीता का रूप मानी जाती है।
चांई गांव में वेदवती सफेद पत्थर शिला रूप में पूजी जाती है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के डिमरी पुजारी मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। रामावतार से पूर्व वेदवती ने चांई गांव में तपस्या की थी। जब इस क्षेत्र से रावण कैलाश की ओर जा रहा था, तब वह कुछ देर के लिए वेदवती की कुटिया में रुका।
वेदवती ने रावण का आतिथ्य सत्कार किया, लेकिन रावण ने वेदवती को छूने की कोशिश की थी। इसके बाद वेदवती ने रावण को श्राप दिया था कि त्रैतायुग में वही उसके अंत का कारण बनेगी और उसने वहीं शरीर त्याग दिया था।
रामावतार में जब राम, लक्ष्मण और सीता 14 वर्ष के लिए वन में थे, तो इस दौरान राम ने सीता को वेदवती के श्राप की बात बताई और सीता को अग्नि में समर्पित कर दिया। सीता के रूप में वेदवती प्रकट हुई। तब सीता के रूप में रावण ने वेदवती का हरण किया था। जब रावण का वध हो जाता है, तब सीता की अग्नि परीक्षा होती है। इसमें वेदवती अग्नि को समर्पित हो जाती है और सीता अग्नि से बाहर आती हैं।
भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि हनुमान संजीवनी बूटी को लेने के लिए चमोली जनपद के नीती घाटी में स्थित द्रोणागिरी पर्वत पर पहुंचे थे। वे यहां संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए और द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उठाकर ले गए थे। आज भी यहां पर्वत का टूटा हिस्सा साफ नजर आता है।