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उत्तराखंड

दिवाली की रात हरमीत ने परिवार के खून से खेली थी ‘होली’, चाकू से किए थे ताबड़तोड़ 88 वार

23 अक्तूबर 2014 को हरमीत ने गर्भवती बहन समेत परिवार के चार लोगों की हत्या कर दी थी। दोषी हरमीत को सत्र न्यायालय देहरादून से मिली फांसी की सजा पर हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। 

दिवाली की रात अपनी गर्भवती बहन समेत परिवार के चार सदस्यों को मौत के घाट उतारने वाले हरमीत के खिलाफ हाईकोर्ट ने भी फैसला सुरक्षित रख लिया है। सत्र न्यायालय देहरादून ने इस मामले को दुर्लभ में दुर्लभतम मानते चार लोगों समेत एक गर्भस्थ शिशु की हत्या के दोषी हरमीत को फांसी की सजा सुनाई थी।

करीब 10 साल पहले दिवाली की रात के खौफनाक मंजर को उस वक्त हरमीत के सात साल के मासूम भांजे कंवलजीत ने अपनी आंखों से देखा था। पिता, सौतेली मां, बहन और भांजी को मौत के घाट उतारने के बाद हत्यारे के हाथ कंवलजीत की तरफ भी बढ़े थे, लेकिन पता नहीं कैसे उसके दिल में दया जाग उठी। चश्मदीद कंवलजीत की गवाही इस मामले में अहम बनी थी।

23 अक्तूबर 2014, चकराता रोड स्थित आदर्शनगर कॉलोनी के लोगों ने दिवाली मनाई। यहां जय सिंह के मकान पर भी झालरें जगमगा रही थीं। बाहर आतिशबाजी करने के बाद जय सिंह का परिवार सोने के लिए चला गया। हरमीत शायद इसी रात का इंतजार कर रहा था। बाहर अब भी आतिशबाजी चल रही थी। अंदर सभी लोग गहरी नींद में सो गए। हरमीत ने पहले अपने पिता जय सिंह को चाकू से गोद डाला। दूसरे कमरे में मां कुलवंत कौर को मारने के बाद गर्भवती बहन हरजीत के कमरे में पहुंचा। यहां उसने हरजीत और उसकी तीन साल की बेटी को चाकू से गोद डाला। इस बीच भांजे कंवलजीत पर उसे तरस आ गया। हालांकि, उसे भी मारने का प्रयास किया। कंवलजीत के शरीर पर भी कई घाव थे।

पंचनामा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जब खुलासा हुआ तो चारों के शरीर पर चिकित्सकों ने कुल 88 घाव गिने। इनमें से सबसे अधिक अपने पिता जय सिंह पर उसने 29 वार किए। मां कुलवंत कौर पर 27 वार कर उन्हें मौत के घाट उतारा। सबसे बुरा हाल उसने बहन हरजीत का किया। गर्भवती बहन के पेट व अन्य हिस्सों में 20 वार किए, जिससे उसका पेट पूरी तरह फट गया और नौ माह के गर्भस्थ शिशु की भी मौत हो गई। भांजी सुखमणि के शरीर पर कुल 11 वार हरमीत ने किए। भांजे के शरीर पर दो घाव के निशान मिले थे। अभियोजन ने इस मुकदमे में कुल 61 दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए थे।

अपनी दलील में अभियोजन ने कहा था कि हरमीत ने इस हत्याकांड को सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दिया था। यही कारण था कि उसने तीन सालों तक खुद को मानसिक रूप से बीमार बताने की कोशिश भी की। मुकदमे का ट्रायल 2015 में शुरू हो गया था, लेकिन इसी बीच उसने खुद को मानसिक बीमार कहना शुरू कर दिया। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर दो बार दिल्ली एम्स के चिकित्सकों ने उसकी जांच की, लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं हुई। इसके बाद एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों के पैनल ने जांच की, मगर खास मदद नहीं मिली। अंत में एक बार फिर एम्स ऋषिकेश के डॉक्टरों ने जांच की तो उसे स्वस्थ घोषित किया गया।

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते वक्त हरमीत की तुलना पशु से की थी। कोर्ट ने लिखा था कि उसका यह कृत्य बर्बरता और पशुतापूर्ण आचरण को दर्शाता है। बचाव पक्ष की मांग आजीवन कारावास है, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो इसका संदेश समाज में ठीक नहीं जाएगा। हर व्यक्ति को अपने जान माल की सुरक्षा का अधिकार है। उसने चार लोगों का कत्ल कर एक गर्भस्थ शिशु को दुनिया में आने से पहले ही मौत के घाट उतार दिया। यह कृत्य पशुतापूर्ण है। इससे उसकी उम्र, आर्थिक स्थिति, कमाने का जरिया आदि सब बातें कोई मायने नहीं रखती हैं। ऐसे में सजा भी ऐसी होनी चाहिए कि समाज कहे कि इसके लिए यही सजा ठीक है।

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