पहाड़ियां पड़ी हैं सूखी, जल्द बर्फबारी नहीं हुई तो फरवरी में ही पिघलने लगेंगे हिमालय के ग्लेशियर
मौसम में हो रहा बदलाव, प्रकृति और पर्यावरण के लिए शुभ नहीं है। जल्द बारिश व बर्फबारी नहीं हुई तो फरवरी पहले सप्ताह से ही हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघलने लग जाएंगे।
सर्दियों की बर्फबारी को हिमालय के ग्लेशियरों के लिए खुराक माना जाता है। लेकिन, इस बार हालात काफी नासाज हैं। बीते पांच महीनों से हिमालय क्षेत्र में बर्फ का अकाल पड़ा है। ग्लेशियरों पर नई बर्फ नहीं है। हर साल जो पहाड़ियां बर्फ की मोटी परत से सजी रहती थीं वहां भी सूखा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम में हो रहा बदलाव, प्रकृति और पर्यावरण के लिए शुभ नहीं है। जल्द बारिश व बर्फबारी नहीं हुई तो फरवरी पहले सप्ताह से ही हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघलने लग जाएंगे, इससे आने वाले समय में भारी जल संकट पैदा हो सकता है।
समुद्रतल से 11,750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम में बीती बरसात के बाद से अभी तक बमुश्किल से दो फीट तक बर्फबारी हुई है। बीते सप्ताह यहां हल्की बर्फबारी हुई थी। लेकिन, यह नाकाफी है। केदारनाथ से चार किमी ऊपर चोराबाड़ी ताल व छह किमी ऊपर वासुकीताल क्षेत्र में भी बर्फ गायब हैं। इस शीतकाल में चोराबाड़ी ग्लेशियर और उससे लगे कंपेनियन ग्लेशियर पर बर्फ की नई परत नहीं बन पाई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि शीतकाल में होने वाली बर्फबारी ग्लेशियरों के साथ ही हिमालय के मध्य व निचले क्षेत्र के लिए लाभकारी होती है। लेकिन कुछ वर्षों से हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी का चक्र पूरी तरह से बदल गया है, जो चिंताजनक है। अगर, जनवरी के आखिरी तक अच्छी बर्फबारी नहीं होती है, तो फरवरी से ही हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघलने लग जाएंगे, जिससे कई प्राकृतिक स्रोत सूख सकते हैं। साथ ही निचले इलाकों में भी पेयजल संकट गहरा सकता है।
केदारनाथ में बेमौसम में हो रही तेज बर्फबारी
वर्ष 2021-22, 2022-23 और 2023-24 शीतकाल में केदारनाथ में अपेक्षाकृत बहुत कम बर्फबारी हुई है। वर्ष 2022-23 में बरसात के बाद सितंबर, अक्तूबर से लेकर दिसंबर में यहां नाममात्र की बर्फबारी हुई थी। बीते वर्ष जनवरी में गिनती के पांच दिन ही बर्फ गिरी थी। जबकि मई से जून तक यहां 21 दिन लगातार बर्फबारी हुई। इस दौरान यात्रा भी व्यापक प्रभावित हुई थी। इस वर्ष भी हालात बीते वर्ष जैसे हैं। बीते वर्ष 15 नवंबर को कपाट बंद होने के बाद से दिसंबर तक यहां गिनती के दिन बर्फबारी हुई। जबकि इस जनवरी में भी दो दिन ही हल्की बर्फ गिरी। इससे पहले वर्ष 2016 से 2018 तक शीतकाल में केदारनाथ में जमकर बर्फबारी हुई थी। वर्ष 2018-19 में शीतकाल में केदारनाथ में 64 फीट से अधिक बर्फ गिरी थी।
बर्फबारी नहीं होने से बढ़ेगा तापमान
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विवि के उच्च शिखरीय पादप शोध संस्थान के निदेशक डाॅ. विजयकांत पुरोहित का कहना है कि, हिमालय क्षेत्र में सर्दियों में बर्फबारी नहीं होने से फरवरी से ही निचले इलाकों में तापमान बढ़ सकता है। जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगेंगे और नदियों का जलस्तर मार्च-अप्रैल में ही बढ़ने लगेगा। इसका असर हिमालय के उच्च व मध्य क्षेत्र के प्राकृतिक जलस्रोतों और बुग्यालों पर भी पड़ेगा।
सर्दियों में जितनी तेज बर्फ गिरेगी, ग्लेशियर उतना ही मजबूत होंगे। लेकिन बीते दो वर्षों से ऐसा नहीं हो रहा है। फरवरी के बाद होने वाली बर्फबारी का ग्लेशियरों को ज्यादा लाभ नहीं मिलता है। बल्कि इससे हिमस्लखन की घटनाएं बढ़ती हैं। वर्ष 2022 व 2023 में केदारनाथ क्षेत्र में बेमौसम की तेज बर्फबारी के कारण ही चोराबाड़ी क्षेत्र में हिमस्लखन की कई घटनाएं हो चुकी हैं।
– डाॅ. मनीष मेहता, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी संस्थान, देहरादून