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कम हो जाएगी भाजपा सांसदों की ‘कैबिनेट में हिस्सेदारी’, गठबंधन सरकार में ऐसी बन रही है तस्वीर

इस बार केंद्र में गठबंधन की सरकार बनने वाली है। गठबंधन भी ऐसा, जिसमें भाजपा सरकार बनाने के नंबर से पीछे है। ऐसी दशाओं में सियासी गलियारों में चर्चाएं इसी बात की हो रही हैं, क्या नया एनडीए का कैबिनेट पूरी तरीके से भाजपा के हिस्से में आएगा या बंटवारा होगा।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया। ऐसे में जल्द ही नई सरकार के गठन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जानकारी के अनुसार एनडीए सरकार बनाने का दावा पेश करने जा रही है। जानकारों का मानना है कि अगर एनडीए ही नई सरकार बनाती है, तो इस बार कैबिनेट जरूर पूरी तरह से बदली हुई नजर आएगी। खासतौर से नई सरकार के मंत्रिमंडल में गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के नेताओं को ठीक-ठाक जगह मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। दरअसल 2019 की मोदी कैबिनेट में शुरुआती चरण में बतौर कैबिनेट मंत्री शिरोमणि अकाली दल और लोक जनशक्ति पार्टी और जेडीयू को ही मौका दिया गया था। लेकिन इस बार कैबिनेट मंत्री बनने की फेहरिस्त में ही घटक दलों का मजबूत दबाव माना जा रहा है।

इस बार केंद्र में गठबंधन की सरकार बनने वाली है। गठबंधन भी ऐसा, जिसमें भाजपा सरकार बनाने के नंबर से पीछे है। ऐसी दशाओं में सियासी गलियारों में चर्चाएं इसी बात की हो रही हैं, क्या नया एनडीए का कैबिनेट पूरी तरीके से भाजपा के हिस्से में आएगा या बंटवारा होगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार कैबिनेट की पूरी तस्वीर बदली हुई होगी। राजनीतिक विश्लेषक हरमोहन चंदेल कहते हैं कि 2019 की सरकार में बनाई गई कैबिनेट और 2024 की बनने वाली कैबिनेट पूरी तरह से अलग होगी। वह कहते हैं कि पिछली बार भारतीय जनता पार्टी के पास अपने सांसद इतने थे कि घटक दलों के सांसदों की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन भाजपा ने गठबंधन का धर्म निभाते हुए दो राजनीतिक दलों को कैबिनेट में जगह दी। शिरोमणि अकाली दल से हरसिमरत कौर बादल और लोक जनशक्ति पार्टी से रामविलास पासवान को कैबिनेट में जगह दी गई।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि सिर्फ कैबिनेट मंत्रालय में ही नहीं, राज्य मंत्रियों के हिस्से में भी पिछली सरकार में भारतीय जनता पार्टी ने घटक दलों को उतनी हिस्सेदारी नहीं दी थी। वरिष्ठ पत्रकार शरद कुमार कहते हैं कि 2019 में जब मोदी सरकार बनी, तो इस्पात मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री के तौर पर धर्मेंद्र प्रधान को जिम्मेदारी दी गई। हालांकि बाद में यह मंत्रालय जदयू के हिस्से में आरसीपी सिंह के पास आ गया। इसी तरह राज्य मंत्रियों की फेहरिस्त में भी भारतीय जनता पार्टी ने अपना दल से अनुप्रिया पटेल और रामदास आठवले को जगह दी। बाद में जरूर मंत्रालयों में परिवर्तन करके कुछ फेरबदल होते रहे, जिसमें शिवसेना और लोजपा को भी जगह मिली। बावजूद इसके पिछली मोदी कैबिनेट में भारतीय जनता पार्टी सांसदों का ही बोल बाला रहा।

लेकिन इस बार बदली हुईं परिस्थितियों में एनडीए की सरकार में भारतीय जनता पार्टी के सांसदों की हिस्सेदारी के कम होने की संभावनाएं हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि इसकी प्रमुख और महत्वपूर्ण वजह यही है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी के पास इतने नंबर नहीं हैं कि वह अपने दम पर सरकार बना सके। इसलिए एनडीए के घटक दलों को नई सरकार में न सिर्फ कैबिनेट में मजबूत हिस्सेदारी मिलने की संभावनाएं बढ़ी हैं, बल्कि कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर भी इन राजनीतिक दलों ने अभी से दावेदारी ठोक दी है। राजनीतिक जानकारों का कहना की सरकार बनाने की स्थिति में भारतीय जनता पार्टी अपने घटक दलों को मंत्रिमंडल में ठीक ठाक जगह देगी।

जानकारी के मुताबिक एनडीए को सरकार बनाने के लिए गठबंधन में जेडीयू, टीडीपी और लोक जनशक्ति पार्टी समेत शिंदे शिवसेना को भी साथ रखना ही होगा। लेकिन इस बार की बदली हुई परिस्थितियों में भारतीय जनता पार्टी के चार प्रमुख घटक दलों में मंत्रिमंडल का हिस्सेदार बनना तय माना जा रहा है। इसमें जेडीयू, टीडीपी, शिवसेना और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ-साथ अन्य छोटे दलों को भी मंत्रिमंडल में जगह देने का दबाव बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक तेलुगु देशम पार्टी जहां लोकसभा अध्यक्ष के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों की हिस्सेदारी मांग रहे हैं, वहीं जेडीयू ने भी कैबिनेट में तीन मंत्रियों की जगह मांगी है। बिहार के ही एनडीए के महत्वपूर्ण घटक दल के नेता चिराग पासवान की पार्टी की ओर से भी कम से कम दो मंत्रियों की जगह मांगे जाने की बात सामने आई है। एकनाथ शिंदे की शिवसेना भी मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी मांग रही है। जबकि एनडीए की हर सरकार में कैबिनेट का हिस्सा बनने वाली अपनादल भी उसी हक की दावेदारी में है। 

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