बहुआयामी गरीबी में कमी, रोजगार के मौके जुटाने के लिए नए कौशलों में प्रशिक्षण की जरूरत
गरीबों के लिए रोजगार के मौके जुटाने की खातिर डिजिटल शिक्षा की कमियों को दूर करने के साथ उन्हें नए कौशलों में प्रशिक्षित करने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में राज्यसभा में कहा कि पिछले नौ वर्षों में देश में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। लोगों को गरीबी से बाहर लाने में 80 करोड़ लोगों को दिए जा रहे निःशुल्क खाद्यान्न और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की अहम भूमिका है। इससे पहले नीति आयोग की तरफ से भी वैश्विक मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी इंडेक्स (एमपीआई) दस्तावेज जारी किया गया था।
बहुआयामी गरीबी इंडेक्स निकालने के लिए बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं वित्तीय समावेशन जैसी सुविधाओं पर आधारित 12 विभिन्न मानकों-पोषक तत्व, बच्चे की मृत्यु दर, माताओं के स्वास्थ्य, बच्चों के स्कूल जाने की उम्र, स्कूल में उनकी उपस्थिति, रसोई, ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, संपदा व बैंक खातों को शामिल किया जाता है। इसके अनुसार, पिछले नौ वर्षों में भारत में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आ गए हैं। लेकिन अब भी देश में करीब 15 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे हैं। इस दस्तावेज के मुताबिक, सरकार की विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं की इसमें अहम भूमिका रही है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पिछले नौ वर्षों में 5.94 करोड़, बिहार में 3.77 करोड़, मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़, तो राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग एमपीआई मानकों के हिसाब से गरीबी से मुक्त हुए है। इस हिसाब से अब करीब 15 करोड़ लोग एमपीआई मानक से जुड़ी सुविधाओं से वंचित रह गए हैं। ऐसे लोगों की संख्या बिहार में सबसे ज्यादा 26.59 फीसदी, झारखंड में 23.34 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 17.40 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 11.71 फीसदी, राजस्थान में 10.77 फीसदी, तेलंगाना में 3.76 फीसदी, हिमाचल में 1.88 फीसदी, तमिलनाडु में 1.48 फीसदी, केरल में 0.48 फीसदी है। सरकार ने 2030 तक देश के ऐसे सभी नागरिकों को बहुआयामी गरीबी से बाहर करने का लक्ष्य रखा है।
इसी तरह विगत छह नवंबर को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 फीसदी से घटकर 15 फीसदी पर आ गई है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सहित दुनिया के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा संगठनों द्वारा बहुआयामी गरीबी घटाने में भारत की खाद्य सुरक्षा की जोरदार सराहना की गई है। आईएमएफ द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है कि सरकार द्वारा चलाई गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट में बहुआयामी गरीबी के दायरे से देश की सभी जनता को पूरी तरह से मुक्त करने के पक्के इरादों और प्रयासों की कवायद स्पष्ट रूप से दिखाई दी है। इस नए अंतरिम बजट में वित्तमंत्री ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 के तहत बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर निकालने वाले विभिन्न मदों पर किए गए वित्तीय आवंटन की तुलना में औसतन 10 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी की है।
भारत को अब भी निम्न आय वाला देश माना जाता है। विभिन्न वर्गों की प्रति व्यक्ति आय में संतुलित वृद्धि से अधिक लोग गरीबी के दायरे से बाहर आएंगे और उनका जीवन बेहतर होगा। इसके साथ-साथ बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे परिवारों के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल से सुसज्जित करके रोजगार के जरिये सशक्तीकरण का अभियान सुनिश्चित करना होगा।
इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि विकास की प्रक्रिया और गरीबी उन्मूलन में देश के कुछ प्रदेश बहुत पीछे छूट गए हैं। इन राज्यों के समावेशी विकास पर विशेष ध्यान देना होगा। चूंकि कोविड-19 के बाद बहुआयामी गरीबी को दूर करने के लिए इस वर्ग के युवाओं में डिजिटल शिक्षा की जरूरत बढ़ गई है और इसकी अहमियत रोजगार में भी बढ़ गई है। ऐसे में, गरीब एवं कमजोर वर्ग के युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार को डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा, वहीं दूसरी ओर, उन्हें कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से नए हुनर सिखाए जाने की जरूरत होगी।