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मीराबाई जयंती आज, जानिए मीरा कैसे हुईं कृष्ण के प्रेम में लीन

मीराबाई बचपन से ही भगवान कृष्ण की भक्ति में रम गई थीं। वे अपने पूरे जीवन काल में भगवान कृष्ण की भक्ति करती रहीं। आज भी मीराबाई की भक्ति के किस्से लोगों के याद रहते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों में मीराबाई का स्थान सर्वोच्च है। मीराबाई ने स्वयं को पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में लीन कर लिया था। प्रत्येक वर्ष अश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मीराबाई की जयंती मनाई जाती है। इस बार मीराबाई जयंती 28 अक्तूबर 2023 को है। वैसे तो इनके जन्म समय का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि मीराबाई का जन्म 1448 के लगभग हुआ था। मीराबाई बचपन से ही भगवान कृष्ण की भक्ति में रम गई थीं। वे अपने पूरे जीवन काल में भगवान कृष्ण की भक्ति करती रहीं। आज भी मीराबाई की भक्ति के किस्से लोगों के याद रहते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि कैसे मीराबाई हुईं कृष्ण प्रेम में लीन और कैसा रहा उनका भक्ति सफर…

मीराबाई कैसे बनीं कृष्ण भक्त
एक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि मीराबाई जब बाल्यकाल की अवस्था थीं तब उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गईं। बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है, इस पर मीराबाई की माता ने उपहास में ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे पति हैं, यह बात मीराबाई के मन में एक गांठ की तरह समा गई और वे कृष्ण को ही अपना पति मानने लगीं।  

मीराबाई का जीवन
मीराबाई जोधपुर, राजस्थान के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। ये अपने पिता रतन सिंह की एकमात्र संतान थीं। मीराबाई जब छोटी थीं तभी उनकी मां का देहांत हो गया। इसके बाद उनके दादा राव दूदा उन्हें मेड़ता ले आए और यहीं पर मीराबाई का पालन-पोषण हुआ। मीराबाई ने बचपन से ही अपने मन में कृष्ण की छवि को बसा लिया था और जीवनभर उन्हें ही अपना सब कुछ मानकर उनकी भक्ति में लीन रहीं। मीराबाई ने कृष्ण को ही अपने पति के रूप में स्वीकार लिया था, इसलिए वे विवाह भी नहीं करना चाहती थी। हालांकि उनकी इच्छा के विरुद्ध राजकुमार भोजराज के साथ उनका विवाह कर दिया गया।

पति की मृत्यु के बाद और ज्यादा बढ़ गई मीरा की कृष्ण के प्रति भक्ति
मीराबाई के विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहांत हो गया, जिसके बाद वे और भी ज्यादा कृष्ण भक्ति में लीन हो गईं। कहा जाता है कि उस समय लोगों ने मीराबाई को उनके पति के साथ सती करना चाहा, लेकिन वे इसके लिए नहीं मानी क्योंकि वे कृष्ण को अपना पति मानती थीं। यह भी कहा जाता है कि इसी कारण उन्होंने अपना श्रृंगार भी नहीं उतारा। इसके बाद मीराबाई की अनुपस्थिति में ही उनके पति का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

मीराबाई के पति का देहांत होने के बाद उनकी भक्ति दिनों-दिन बढ़ती चली गई। वे मदिर में जाकर इतनी लीन हो जाती थीं कि श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटों तक नाचती रहती थीं। मीराबाई की कृष्ण के प्रति इतनी भक्ति उनके ससुराल वालों को अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए उन्हें कई बार मारने का प्रयास भी किया गया। कभी विष देकर तो कभी जहरीले सांप के द्वारा। परंतु श्रीकृष्ण की कृपा से मीराबाई को कुछ नहीं हुआ।  

कृष्ण की मूर्ति में समा गई मीराबाई
कई बार मीराबाई के मारने का प्रयास किया, इसके बाद वे वृंदावन और फिर वहां से द्वारिका चली आईं। इसके बाद वे साधु-संतों के साथ रहने लगीं व कृष्ण की भक्ति में रमी रहीं। मीराबाई की मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन भर भगवान कृष्ण की भक्ति की और अंत समय में भी वे भक्ति करते हुए कृष्ण की मूर्ति में समा गई थीं।

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