नई सरकार का एजेंडा क्या हो? देश की बेहतरी के लिए बने उचित नीतियां
नई सरकार का व्यापक एजेंडा घरेलू और बाहरी क्षेत्र की उचित नीतियों के जरिये भारत की क्षमता को बेहतर बनाने में मददगार होना चाहिए। सरकार का ध्यान निजी निवेश बढ़ाने और सार्वजनिक कर्ज घटाने पर केंद्रित हो। बाहरी क्षेत्र की नीतियां उन रणनीतियों पर केंद्रित हों, जो वैश्विक झटकों के जोखिम को कम करें।
आज 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद एक नई सरकार अपना कार्यभार संभाल लेगी। आइए, चुनावी दौर की तल्ख बयानबाजी से थोड़ा अलग हटकर हम आर्थिक नीति के क्षेत्र में नई सरकार के महत्वाकांक्षी एजेंडे को निर्धारित करने की कोशिश करते हैं।
हालांकि भारत ने कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन भू-राजनीतिक कारणों से अब भी झटके लगने की आशंका एवं अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। एक मुक्त अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत इससे अछूता नहीं है। हालांकि मूडीज और एस एंड पी जैसी प्रतिष्ठित क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के अलावा, विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष तक ने भारत की विकास दर की तारीफ की है। फिर भी चुनौतियां बाकी हैं। इसलिए नई सरकार का व्यापक एजेंडा घरेलू और बाहरी क्षेत्र (अंतरराष्ट्रीय) के लिए उचित नीतियों के माध्यम से भारत की क्षमता को बेहतर बनाने में मददगार होना चाहिए। घरेलू क्षेत्र की नीतियों के तहत सरकार का ध्यान निजी निवेश बढ़ाने और सार्वजनिक कर्ज घटाने पर केंद्रित होना चाहिए। बाहरी क्षेत्र की नीतियों को उन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो व्यापार के खुलेपन पर प्रतिबंध लगाए बिना भारत के लिए वैश्विक झटकों के जोखिम को कम करे। अब हम कुछ ऐसे क्षेत्रों की चर्चा कर रहे हैं, जिन पर नई सरकार अपना ध्यान केंद्रित करना चाहेगी।
भारत की राष्ट्रीय समृद्धि अलग-अलग राज्यों की समृद्धि से जुड़ी हुई है। आर्थिक समृद्धि के लिए केंद्र सरकार का काम नीति एवं विश्वास का एक सक्षम ढांचा तैयार करना है। आर्थिक सुधार के 25 वर्ष बाद यह स्पष्ट है कि केंद्र एवं राज्यों की आर्थिक नीति संबंधी कार्रवाइयां लोगों की आर्थिक नियति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। देश के आर्थिक विकास और प्रगति के लिए आने वाली सरकार को विकास एवं समृद्धि का लाभ उठाने की खातिर केंद्र-राज्य संबंधों को और मजबूत बनाना होगा।
वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों ने आर्थिक विकास में राज्यों की भूमिका को व्यापक तरीके से बढ़ाया। यह प्रक्रिया आज भी जारी है। उसके बाद आने वाली सभी सरकारों ने इस प्रक्रिया को और मजबूत ही बनाया है। केंद्र एवं राज्यों के बीच बेहद सामंजस्यपूर्ण रिश्ते देश के लोगों की आर्थिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होंगे। हालांकि हाल के महीनों में विभिन्न मुद्दों पर हमने केंद्र और राज्यों के रिश्तों में तनाव देखा है। बेशक, इनमें से कुछ मुद्दे चुनावी मौसम होने के कारण हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय संसाधनों पर राज्यों के अधिकार, वित्तीय स्वायत्तता तथा केंद्र एवं राज्यों की विषम शक्तियां ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका समाधान एक संघीय देश को हमेशा करने की आवश्यकता होती है। यह एक सतत प्रक्रिया है और इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यदि इनका समाधान न किया जाए, तो ये जरूर असामान्य हो सकते हैं। केंद्र एवं राज्यों के बीच चर्चा, बहस और बातचीत के लिए इस तरह से एक संस्थागत ढांचा तैयार किया जाना चाहिए कि वह केंद्र-राज्य संबंधों के सभी मुद्दों का भरोसे के आधार पर समाधान सुझाए।
हमारे देश का तेजी से शहरीकरण हो रहा है। वर्ष 2030 तक शहरी आबादी के मामले में भारत सबसे ज्यादा शहरीकृत देशों में से एक होगा। चूंकि तेज शहरीकरण के साथ-साथ विस्थापन भी तेजी से बढ़ेगा, इसलिए तेज शहरीकरण के लिए जरूरी संसाधनों के वित्तपोषण की खातिर उचित तरीके के बारे में सोचने की जरूरत है। अर्थव्यवस्था और समाज में दूरगामी बदलावों के लिए वित्तीय संसाधनों का प्रावधान महत्वपूर्ण है और इसे रणनीतिक जरूरत ही माना जाना चाहिए। शहरीकरण का लाभ उठाने और चुनौतियों से निपटने के लिए सार्वजनिक निवेश संबंधी समर्थन महत्वपूर्ण होगा। नई सरकार को नए शहरी विकास के एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
साझा बाजार के विकास, उच्च आर्थिक विकास और राजस्व के मामले में जीएसटी का व्यापक लाभ उठाने के लिए जीएसटी संरचना के ढांचे को और ज्यादा सरल बनाने की जरूरत है। दो-दर वाली जीएसटी संरचना तैयार करने के लिए जीएसटी ढांचे में और सुधार की खातिर परामर्श प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। असल में, जीएसटी ढांचे में परिवर्तन केवल जीएसटी परिषद में ही किया जा सकता है। इसलिए इस दिशा में कदम उठाना जीएसटी ढांचे को सरल बनाने के दीर्घकालीन समाधान के लिए फायदेमंद होगा। नया जीएसटी ढांचा इस तरह तैयार किया जाना चाहिए, जिसका आधार व्यापक हो, लेकिन कर की दर कम हो। यह आसान काम नहीं है। राजस्व और अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर ऐसे बदलावों के निहितार्थ को समझने के लिए प्रमुख नीति विश्लेषण एवं आम सहमति बनाने की जरूरत होगी।
चूंकि भारत व्यापक आर्थिक समृद्धि हासिल करने की ओर तेजी से अग्रसर है, इसलिए देश में बढ़ती आर्थिक असमानता से निपटने के लिए सावधानीपूर्वक नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है। इसके लिए सरकारी खर्च को अधिक से अधिक पुनर्वितरित करने की आवश्यकता है। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान विरासत में मिली संपत्ति पर कर लगाने के बारे में काफी चर्चा हुई, लेकिन विभिन्न देशों के अनुभवों से यह स्पष्ट है कि संपत्ति पर कर लगाकर प्रगति की गुंजाइश बहुत कम है। इस मामले में भारत का अपना अनुभव भी बहुत अच्छा नहीं है। इसलिए व्यापक आधार पर सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए सरकारी खर्च के पुनर्वितरण पर ध्यान केंद्रित करना ज्यादा मददगार साबित होगा।
अंत में, नई सरकार का दीर्घकालीन एजेंडा प्रौद्योगिकी में निवेश, डिजिटल बुनियादी ढांचे का विस्तार व उसका विनियमन करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का शमन करने के लिए उचित नीतिगत ढांचा तैयार करने पर केंद्रित होना चाहिए, ताकि भारत को वैश्विक विकास का प्रमुख इंजन बनाए रखा जा सके।