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उत्तराखंड

जब पुलिस से बचने के लिए इंस्पेक्टर का घर ही किराये पर ले लिया, पूर्व सीएम ने सुनाया रोचक किस्सा

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रामजन्म भूमि आंदोलन से जुड़े अपने अनुभव अमर उजाला से साझा किए…

मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दायित्व से जुड़ा था। मुझे मेरठ भेजा गया था। जब रामजन्म भूमि आंदोलन चरम पर था, उस दौरान मुझे कार सेवकों को अयोध्या भेजने का दायित्व मिला था। तब हम संघ कार्यालय में ही रहते थे। कार्यालय के पास एक मुस्लिम व्यक्ति की चाकू से गोद कर निर्मम हत्या हो गई। पुलिस अपराधी की तलाश में जुटी थी।

तब मेरे पास एसपी सिटी त्रिपाठी आए। मेरे पिता का निधन होने की वजह से मैंने बाल कटा रखे थे। सिर पर चोटी भी थी। त्रिपाठी ने मुझे ब्राह्मण समझ लिया। विनम्रता के भाव से बोले, पंडितजी संघ कार्यालय से निकल लो। किसी दिन भी गिरफ्तार कर लिए जाओगे। उन्होंने संघ कार्यालय में बुजुर्गों को छोड़कर बाकी सभी युवा कार्यकर्ताओं को कार्यालय छोड़कर चले जाने की पहले सलाह दी और बाद में धमकी तक दे डाली।

हम अपने कर्तव्य से जुड़े थे। मन में एक संकल्प था कि अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनाकर ही दम लेंगे। पुलिस से बचने के लिए हमने कुर्ता-पायजामा पहनने के बजाय पैंट-शर्ट पहननी शुरू कर दी। हेयर स्टाइल भी बदल ली। जो लोग क्लीन शेव थे, उन्होंने दाढी रख ली। हमें मेरठ से अधिक से अधिक कारसेवकों को अयोध्या भेजने का दायित्व मिला था।

हम इस अभियान में पूरी तल्लीनता के साथ जुटे थे। पुलिस से बचने के लिए हमें एक उपाय सूझा। हमने पुलिस इंस्पेक्टर का घर ही किराये पर ले लिया। हम सुबह वहां से निकल जाते थे और देर शाम को लौटते थे। पुलिस इंस्पेक्टर के घर पर होने की वजह से पुलिस को भी हम पर संदेह नहीं होता था। मुझे मेरठ की बच्चा जेल की याद है।

इसकी क्षमता 250 की थी, लेकिन जब आंदोलन अपने चरम पर पहुंचा और पुलिस ने धर-पकड़ शुरू की तो यही बच्चा जेल 1100 कारसेवकों से ठसाठस भर गई थी। हम जेल में कारसेवकों की कुशलक्षेम पूछने जाते थे। हमारी यह कोशिश रहती थी कि कोई भी कारसेवक पुलिस की गिरफ्त में न आए, इसलिए हम अयोध्या के पास के जिस स्टेशन तक का टिकट कारसेवकों के लिए लेते थे, वहां उन्हें उतरने नहीं देते थे।

वे एक-दो स्टेशन पहले ही उतर जाते थे, ताकि वे पुलिस से बच सकें। एक घटना मुझे देहरादून की भी याद आती है। घंटाघर के पास एक बड़ा प्रदर्शन हो रहा था। भारी पुलिस बल तैनात था। तभी एक नौजवान को मसखरी सूझी। वह इंस्पेक्टर के कमर पर लटकी रिवाल्वर पर हाथ मारा और चंपत हो गया। इंस्पेक्टर हैरान-परेशान थे।

संघर्ष के उस दौर में हमें पूरा विश्वास था कि जो लक्ष्य लेकर हम चल रहे हैं, वह दिन जरूर आएगा, जब अयोध्या में रामलला भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व में 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। यह हम सभी के लिए बहुत गौरव की बात है।

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