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उत्तराखंड

मायावती ने लोकसभा चुनाव के दौरान क्यों पलटा फैसला? रास नहीं आए आकाश के कई बयान; बेहद नागवार गुजरी ये बात

बसपा सुप्रीमो मायावती के उत्तराधिकारी व पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद से अचानक सारी जिम्मेदारियां वापस लिए जाने के बाद सियासी गलियारों में इसके निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं। पार्टी को युवा नेतृत्व प्रदान करने के फैसले को मायावती ने लोकसभा चुनाव के दौरान क्यों पलटा, इसे लेकर तमाम कयास भी लग रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मायावती ने फिलहाल आकाश आनंद को हटाकर उनके सियासी भविष्य को सुरक्षित रखने की कवायद की है। इस फैसले से उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। उन्होंने परिवार के सदस्य पर कार्रवाई कर बसपा कॉडर को भी संदेश दिया है।

दरअसल, मायावती खुद भी भाजपा और कांग्रेस पर लगातार हमले करती रही हैं लेकिन उनकी भाषा संयमित रहती है। जबकि सीतापुर में आकाश आनंद का भाषण पार्टी लाइन के विपरीत था। इसकी वजह से उनके साथ चार प्रत्याशियों पर भी मुकदमा दर्ज हो गया, जो मायावती को बेहद नागवार गुजरा।

वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव का कहना है कि मायावती के इस फैसले का निहितार्थ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयान से निकाला जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा कि बसपा को वोट देकर उसे खराब न करें। आकाश आनंद ने बिना सोचे-समझे जो बयान दिया, उसका असर पार्टी पर पड़ना स्वाभाविक है।

वहीं, एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि आकाश आनंद के भाषणों को लोग पसंद कर रहे थे। उनकी स्थिति बसपा में मजबूत होती जा रही थी लेकिन उन्होंने भड़काऊ बातें कहकर शीर्ष नेतृत्व को नाराज कर दिया। जब तक आकाश सपा और कांग्रेस के खिलाफ बोलते रहे, किसी ने खास संज्ञान नहीं लिया। जैसे ही उन्होंने भाजपा पर हमला बोला, पार्टी में भी विरोध के सुर उठने लगे। दरअसल, लोग सत्तारूढ़ दल के खिलाफ सुनना चाहते हैं और आकाश ने भी यही तरीका अपनाया।

सपा पर दिख रहे थे नरम
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी के मुताबिक आकाश आनंद का सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को बड़ा नेता कहकर नरम रुख दिखाना मायावती को रास नहीं आया। चुनाव नतीजे आने पर गठबंधन को लेकर आकाश का बड़बोलापन भी पार्टी लाइन के विपरीत था। जबकि चुनाव में मायावती खुद आक्रामक रुख नहीं अपना रही हैं। आकाश का अति उत्साह में संवेदनशील मुद्दों पर बोलना उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता था।

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल का मानना है कि अपने कॅरिअर की शुरुआत में मुकदमा होना आकाश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। पार्टी में उनके खिलाफ उठ रहे सुरों को मायावती ने अपने इस फैसले से शांत करने का प्रयास किया है। साथ ही उन्होंने खुद पर लग रहे परिवारवाद के आरोपों को भी इस फैसले से खारिज करने की रणनीति अपनाई है।

पार्टी में भी हुआ विरोध
सूत्रों की मानें तो सीतापुर में दिए गए भाषण के बाद आकाश का पार्टी में भी विरोध शुरू हो गया था। कई प्रत्याशियों के मुकदमे में नामजद होने से बसपा सुप्रीमो के पास आकाश को हटाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा था। इस तरह उन्होंने पार्टी के साथ भाजपा नेताओं की नाराजगी को भी कम करने की कवायद की है। यह भी संभावना जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आकाश की बहाली भी हो सकती है।

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