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उत्तराखंड

मेघनाद को ‘इंद्रजीत’ क्यों कहते हैं, जानिए संस्कृति के पन्नों से

मेघनाद के युद्धभूमि में पहुंचते ही स्थिति पलट गई। उसके युद्ध-कौशल के समक्ष देवता परास्त हो गए। मेघनाद ने देवराज इंद्र को बंदी बना लिया और उसे लंका लाकर रावण के सामने खड़ा कर दिया। 

ब्रह्मा से वरदान पाकर रावण लगभग अजेय हो गया था। शक्तिशाली व्यक्ति प्राय: उच्छृंखल हो ही जाता है। रावण की सेना ने यत्र-तत्र आक्रमण किए और एक दिन उसकी सेना देवलोक पर चढ़ आई। देवताओं के लिए रावण से लड़ना सरल नहीं था, फिर भी देवताओं ने राक्षसों को कड़ी टक्कर दी। रावण ने जब देखा कि देवताओं को युद्ध के सामान्य तरीकों से परास्त करना संभव नहीं होगा, तो उसने अपने वीर पुत्र मेघनाद को युद्धभूमि में भेजा।

मेघनाद अपने पिता की भांति शक्तिशाली होने के साथ-साथ अनेक तांत्रिक शक्तियों का स्वामी एवं मायाजाल में निपुण था। उसने ये सब सिद्धियां निकुंभला की गुफा में तामसी साधना करके अर्जित की थीं। कठोर तप द्वारा मेघनाद ने अग्निहोम, अश्वमेध, बाहुस्वर्ण, राजसूय, गोमेद और वैष्णव जैसे छह महान यज्ञ भी संपन्न किए थे। उसके पास भगवान शिव द्वारा दिया गया दिव्य रथ था, जो क्षण भर में किसी भी स्थान पर पहुंच सकता था। वह अदृश्य होकर शत्रु से युद्ध कर सकता था। मेघनाद के पास एक अजेय धनुष, दो अक्षय तरकश और अनेक दिव्यास्त्र भी थे। कुल मिलाकर मेघनाद एक खतरनाक और असाधारण योद्धा था।

मेघनाद के युद्धभूमि में पहुंचते ही स्थिति पलट गई। शीघ्र ही उसके युद्ध-कौशल के समक्ष देवता परास्त हो गए। मेघनाद ने देवराज इंद्र को बंदी बना लिया और उसे लंका लाकर रावण के सामने खड़ा कर दिया। इंद्र की ऐसे दशा देखकर रावण की खुशी का ठिकाना न रहा। अब देवलोक रावण के अधीन था। इंद्र के बंदी बना लिए जाने से देवलोक में शोक की लहर थी।

इस समाचार के साथ जब देवतागण ब्रह्मा के पास पहुंचे, तो उन्हें अहसास हुआ कि उन्हीं के वरदान के फलस्वरूप रावण दुस्साहसी और अनाचारी हो गया था। ब्रह्मा ने इस दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए निश्चय किया कि वह स्वयं लंका जाकर इंद्र को मुक्त करवाएंगे। ब्रह्मा, रावण के राजदरबार में पहुंचे, तो वह उनके सम्मान में उठ खड़ा हुआ। उसे ब्रह्मा के आगमन का कारण पता था, फिर भी उसने पूछा, ‘परमपिता! आदेश कीजिए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?’ 

ब्रह्मा बोले, ‘रावण! तुम्हारे पुत्र मेघनाद की विजय सराहनीय है। परंतु सृष्टि के क्रिया-कलाप को सुचारू ढंग से चलाने का दायित्व देवताओं पर है। इंद्र की अनुपस्थिति से देवलोक का कामकाज रुक गया है। मैं चाहता हूं कि तुम इंद्र को मुक्त कर दो।’ रावण को यह सुनकर बड़ा आनंद आया कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा उसके सामने असहाय खड़े याचना कर रहे थे। रावण बोला, ‘प्रभु, मैं अवश्य इंद्र को छोड़ देता, किंतु उसे युद्ध में मैंने नहीं, अपितु मेरे पुत्र मेघनाद ने परास्त किया है। इसलिए इस विषय में निर्णय लेने का अधिकार भी केवल मेघनाद को ही है। अत: आपको यह विनती मेघनाद से करनी पड़ेगी।’

ब्रह्मा समझ गए कि रावण उन्हें लज्जित कर रहा है। परंतु देवलोक को बचाने के लिए उन्होंने अपमान का घूंट चुपचाप पी लिया।  फिर ब्रह्मा ने मेघनाद से कहा, ‘पुत्र मेघनाद, देवताओं की पराजय हो चुकी है। परंतु सृष्टि की व्यवस्था को कायम रखने के लिए इंद्र का रहना आवश्यक है। कृपया उसे मुक्त कर दो।’ 
मेघनाद विजय के मद में चूर था। वह बोला,‘परमपिता, मैंने किसी सामान्य राजा को नहीं, अपितु देवलोक के शासक को परास्त किया है। यदि मैंने इंद्र को यूं ही छोड़ दिया, तो संपूर्ण उद्यम निष्फल हो जाएगा। आप ही कहिए कि मुझे इंद्र को मुक्त करने के बदले में क्या देंगे?’

ब्रह्मा बोले, ‘मेघनाद, संसार की कोई भौतिक वस्तु तुम्हारे लिए अलभ्य नहीं है। और भौतिक वस्तुएं वैसे भी भंगुर होती हैं। परंतु ख्याति सनातन है; वह कभी नष्ट नहीं होती। अत: मैं तुम्हें एक नया नाम देता हूं, जो तुम्हारी मृत्यु के बाद भी शेष रहेगा और संसार को देवराज पर तुम्हारी विजय की याद दिलाएगा।’ मेघनाद की आंखों में चमक उभर आई। उसे ब्रह्मा का प्रस्ताव पसंद आ गया। वह बोला, ‘मैं अपना नया नाम सुनने को व्याकुल हूं!’ ‘तुमने इंद्र को पराजित किया है,’ ब्रह्मा ने कहा, ‘इसलिए आज से तुम्हारा नाम ‘इंद्रजीत’ होगा! क्या तुम्हें यह नाम पसंद है?’ मेघनाद ने धीरे से अपना नाम दोहराया, ‘इं–द्र–जी-त!’ उसके मुख पर प्रसन्नता छा गई। ‘वाह! कैसा विलक्षण नाम है! देवराज इंद्र को मुक्त कर दो!’ इस तरह देवराज इंद्र की मुक्ति के बदले ब्रह्मा ने मेघनाद को ‘इंद्रजीत’ नाम दिया।

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