कैसे पड़ा बदरीनाथ का नाम? कपाट बंद होने से पहले जानें धाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक देवी के त्याग के कारण बदरीनाथ धाम का नाम रखा गया था। जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े होकर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं।
माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने के लिए कठोर तपस्या में जुट गईं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मी हिम से ढकी हुई थीं। उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है इसलिए आज से इस धाम में मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा। तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है इसलिए आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जाएगा। इस तरह से भगवान विष्णु के धाम का नाम बदरीनाथ पड़ा।
- यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में नारायण पर्वत पर अलकनंदा नदी की गोद में स्थित है। जहां भगवान बदरीनाथ ने तप किया था वह पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
- यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां है, इनमें सब से प्रमुख है भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है। यहां भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित है। जिसके दाहिने ओर कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां है। इसे धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है।