खाद्य सुरक्षा की दिशा में समाज, सरकार और बाजार का एक साथ आना जरूरी
देश की खाद्य प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए तीन महत्वपूर्ण कारकों-समाज, सरकार और बाजार-का एक साथ आना बहुत जरूरी है। खाद्य सामग्रियों के उपयोगकर्ता नागरिक, उत्पादनकर्ता किसान और इनकी मदद करने वाली सिविल सोसाइटी, ये तीनों मिलकर खाद्य प्रणाली के संदर्भ में एक समाज तैयार करते हैं।
भारत ने अपनी खाद्य और पोषण सुरक्षा को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत खाद्य सब्सिडी पर अगले पांच वर्षों में लगभग 12 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला किया है। खाद्यान्न उपलब्धता की दिशा में यह कदम महत्वपूर्ण है। पर भारत के सामने पोषण की चुनौती दोहरी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-21 बताता है कि एक तरफ 35 फीसदी बच्चे अविकसित, 57 फीसदी महिलाएं और 25 फीसदी पुरुष एनीमिया से पीड़ित हैं, दूसरी ओर असंतुलित आहार और आलसी जीवनशैली के कारण 24 फीसदी वयस्क महिला और 23 फीसदी वयस्क पुरुष मोटापे का सामना कर रहे हैं। इसके साथ बदलती जलवायु, लगातार घटते भूजल, और मिट्टी का गिरता उपजाऊपन जैसी चुनौतियां हमारी खाद्य सुरक्षा को संकट में डाल सकती हैं।
ऐसे में, देश की खाद्य प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए तीन महत्वपूर्ण कारकों-समाज, सरकार और बाजार-का एक साथ आना बहुत जरूरी है। खाद्य सामग्रियों के उपयोगकर्ता नागरिक, उत्पादनकर्ता किसान और इनकी मदद करने वाली सिविल सोसाइटी, ये तीनों मिलकर खाद्य प्रणाली के संदर्भ में एक समाज तैयार करते हैं। उपभोक्ता के रूप में नागरिकों को बाजार से अपने खान-पान की सामग्री खरीदने और इस्तेमाल करने के ज्यादा सतर्क विकल्प चुनने चाहिए। जब नागरिक खान-पान के लिए बेहतर विकल्प चुनते हैं, तब यह किसानों और बाजार को उपयुक्त फसलें उगाने और उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे ही, किसानों को भी मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए उर्वरकों और कीटनाशकों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल पर ध्यान देना चाहिए। सतत कृषि पर काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायनरमेंट ऐंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) का अध्ययन बताता है कि किसानों को जैविक मल्चिंग और 365 दिनों तक आच्छादित रहने वाली खेती जैसी कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहिए। ये मिट्टी की सेहत सुधारने और उसमें लचीलापन बढ़ाने के अलावा पानी और अन्य कृषि सामग्री की खपत घटाने और किसान का मुनाफा बढ़ाने में सहायक हैं।
खाद्य प्रणाली को सेहतमंद बनाने और सतत परिणामों की तरफ ले जाने के लिए, केंद्र और राज्य सरकारों को मिड डे मील, आंगनबाड़ी, सामुदायिक रसोई जैसी सेवाओं और रेलवे जैसे विभागों के लिए सतत पद्धतियों से स्थानीय स्तर पर उत्पादित पौष्टिक अनाज और दाल खरीदने की शुरुआत करनी चाहिए। जैसे राजस्थान में बाजरा या छत्तीसगढ़ में राजगीरा की खरीद होती है। बच्चों की खाद्य सामग्री के लिए विशेष सख्त नियम होने चाहिए। साथ ही, सरकारों को किसानों की मदद के लिए नए तरीके विकसित करने चाहिए। जैसे किसानों को सब्सिडी पर उर्वरक देने की जगह पर प्रति हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन के आधार पर कृषि सामग्री के लिए नकद सहायता दी जा सकती है। एक सतत खाद्य प्रणाली बनाने में बाजार की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। कारोबार को यह समझने की जरूरत है कि अगर वे सतत और पुनरुत्पादक कृषि पद्धतियों को लोकप्रिय बनाने में किसानों के साथ मिलकर काम नहीं करेंगे, तो उनके सामने कच्चे माल की उपलब्धता बाधित होने का जोखिम बना रहेगा। इसके अलावा, उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं को पौष्टिक और सतत उपभोग की तरफ मोड़ने में कंपनियों की भी बड़ी भूमिका है। जब तक स्थानीय दुकानों पर सेहतमंद खाद्य सामग्री के विकल्प उपलब्ध नहीं होंगे, कोई उपभोक्ता चाहकर भी इनका इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। जैसे, कंपनियों को चीनी और मैदे से भरे ग्लूकोज बिस्कुट की जगह मोटे अनाज से बने बिस्कुट को प्रोत्साहित करना चाहिए।
खाद, बीज और कीटनाशक जैसी कृषि सामग्रियों से जुड़ी कंपनियों के सामने भी अपने बिजनेस मॉडल में धीरे-धीरे बदलाव लाने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, उन्हें बाजार में सिर्फ उर्वरक बेचने की जगह पर उसके इस्तेमाल करने की सेवा भी उपलब्ध करानी चाहिए। इस मॉडल पर आंध्र प्रदेश में मिर्च की खेती से जुड़ा एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) पहले से काम कर रहा है। अगर हमें एक स्वस्थ धरती पर अपने बच्चों के सेहतमंद भविष्य की परवाह है, तो इसके लिए समाज, सरकार और बाजार को एक साथ मिलकर काम करना होगा।