सीजन के अंत में देहरादून पहुंचा खट्टा-मीठा रसीला काफल, कैंसर सहित कई बीमारियों की रोकथाम में होता है सहायक
सीजन के अंतिम दिनों में ही सही पहाड़ का रसीला काफल देहरादून पहुंच गया है। यह पहाड़ी फल कैंसर समेत कई बीमारियों की रोकथाम में सहायक है। हर साल गर्मी के मौसम में उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों के लोग इसका बेसब्री से इंतजार करते हैं।
इस बार जंगल में लगी आग में काफल के पेड़ भी जल गए थे, जिस कारण इस सीजन में देर से काफल दून में बिक्री के लिए पहुंचा है। मांग ज्यादा होने के चलते इस बार 200 रुपये प्रतिकिलो तक बिक रहा है। बीते वर्ष यह 120 से 160 रुपये तक बिक रहा था।
चैत्र के महीने में देवभूमि में उगने वाला काफल प्रारंभिक अवस्था में गहरा हरा और पक कर लाल रंग का हो जाता है।
देहरादून में भी स्थानीय लोग और यहां आने वाले पर्यटक खट्टे मीठे और रसीले काफल का आनंद हर साल लेते हैं। इन दिनों देहरादून के घंटाघर, राजपुर रोड, ईसी रोड समेत विभिन्न जगहों में ठेली और रेहड़ी पर काफल बिक रहा है। देहरादून में धनोल्टी टिहरी के जंगलों से वहां के स्थानीय लोग काफल तोड़कर सुबह राजपुर लाते हैं।
काफल बेचने वाले सोनू बताते हैं कि लोग जरूर काफल की मांग कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जंगलों में आग लगने से काफल खराब हो गए। जिसके चलते इस बार उन्हें दूर तक जंगल में काफी ढूंढने पर काफल मिल रहे हैं।
इसलिए इस बार दाम में कुछ बढ़ोतरी हुई है। वहीं, पलटन बाजार में काफल व्यापारी नीरज यादव ने बताया कि कुछ ही क्षेत्रों में काफल सुरक्षित हैं। एक साथ ज्यादा खरीद