बढ़ते वेतन-पेंशन खर्च से सहमी सरकार,राज्य कर्मियों को अतिरिक्त डोज मिलने के कम

उत्तराखंड में वेतन-भत्ते, पेंशन जैसे विकास से इतर खर्च का लगातार बढ़ता बोझ सरकार को डरा रहा है। वेतन या अन्य देयों को बढ़ाकर कार्मिकों और इसी तरह के तबकों को रिझाने में झिझक के पीछे यही डर काम कर रहा है।
विकास कार्यों के नाम पर लिया जाने वाला ऋण भी गैर विकास मदों के खर्च पूरे करने में निपट रहा है। अंदेशा है कि ऋण का यह बोझ चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 की समाप्ति तक एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगा।
ऋण की सीमा राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 32 प्रतिशत तक पहुंच गई है। परिणामस्वरूप अगले वित्तीय वर्ष 2023-24 में वेतन-भत्ते को बजट की अतिरिक्त डोज देकर न तो अनाप-शनाप बढऩे दिया जाएगा। साथ में बाजार से ऋण उठाने में भी हाथ तंग रहने वाले हैं।
उत्तराखंड वेतन पर खर्च करने के मामले में उत्तरप्रदेश, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों को पीछे छोड़ चुका है। उत्तरप्रदेश में वेतन खर्च की बजट में हिस्सेदारी लगभग 16 प्रतिशत है।
विभिन्न प्रदेशों का कुल खर्चों में वेतन पर खर्च का राष्ट्रीय औसत लगभग 22 प्रतिशत है, जबकि उत्तराखंड में यह बढ़कर 32 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। वर्ष 2010-11 से लेकर अब तक दस वर्षों में कर्मचारियों के वेतन-भत्तों पर खर्च 4966 करोड़ से बढ़कर 15 हजार करोड़ को पार कर चुका है। पेंशन पर खर्च 1142 करोड़ से 6297 करोड़ यानी साढ़े पांच गुना बढ़ चुका है।