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हम तो सारे वतन को जगा के चले, याद आए हमारी तो रोना नहीं…,

एक्सप्रेस वे से नीचे उतरने पर सैफई गांव की सीमा में पहुंचते ही गमगीम महौल साफ दिखता है। गांव के चारों तरफ बनी सड़क पर हर कदम पांडाल की ओर बढ़ते नजर आए। दुकानें बंद हैं। राजित की किराने की दुकान के बाहर कुछ लोग बैठे हैं। यहां वीडियो चल रहा है। मुलायम सिंह की तस्वीर केसाथ संगीत सुनाई पड़ता है। बोल थे खुश रहो खुश रहो अहल इ वतन, हम अपना फ़ज़ॱर निभाके चले। हम तो सारे वतन को जगा के चले। याद आए हमारी तो रोना नहीं…। इस गीत को सुन वहां बैठे लोगों की आंखें नम हो गईं। पूछने पर राजित बताते हैं कि आज ऐसे नेता की विदाई हो रही है, जिसने परिवार ही नहीं, सैफई और कोठी में आने वाले हर व्यक्ति का ख्याल रखा। यहां बैठे राकेश यादव बकेवर के हैं। उनके पिता ने मुलायम सिंह की कोठी पर बेटे के लिए नौकरी मांगा। जब मुलायम मुख्यमंत्री बने तो उन्हें जल निगम में नौकरी मिली। 

यहां बैठेअन्य लोग भी कुछ ऐसी ही बातें बताते हैं। कहते हैं कि कोठी में जिसने भी फरियाद लगाई, वह निराश नहीं हुआ। मुलायम के जमाने में इटावा का होना ही बड़ी बात थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। उन्हें डर हैकि नया नेतृत्व तवज्जो देगा या नहीं। 

तभी यहां बैठे विक्रम कहते हैं कि नेताजी कहा करते थे कि बहादुर बनो, शिक्षित बनो। अब वे नहीं हैं। लेकिन जो रास्ता दिखाया है,उस पर चलकर परिवार को बहादुर और शिक्षित बनाएंगे। इसी तरह यहां जितने से बात करो, हर कोई नेताजी से जुड़ी एक नई कहानी बताता है।  

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