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उत्तराखंड

दरारों से दर्द में जोशीमठ…क्या सचमुच NTPC की टनल है मुसीबत की जड़?

चौतरफा हमलों में घिरा एनटीपीसी का 520 मेगावाट का तपोवन-विष्णुगाड़ पनबिजली प्रोजेक्ट संकट में फंस सकता है। जोशीमठ में भू धंसाव का आकलन करने सोमवार को यहां आ रही केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की हाईपावर एक्सपर्ट कमेटी नए सिरे से पड़ताल करेगी। उसके एजेंडे में एनटीपीसी के इस प्रोजेक्ट का अध्ययन भी है।

जोशीमठ के स्थानीय लोगों ने एनटीपीसी के खिलाफ पहले से जंग छेड़ रखी है। रुड़की के राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिक टनल और जोशीमठ के रिसाव के पानी के नमूनों की जांच कर रहे हैं। ये दोनों नमूने मैच कर गए तो इस प्रोजेक्ट पर ताला भी लग सकता है।

दरअसल, एनटीपीसी यहां तपोवन से लेकर विष्णुगाड़ तक 12 किलोमीटर लंबी टनल बना रही है। तपोवन एक सिरा है और विष्णुगाड़ दूसरा। बीच में ऊंची पहाड़ी के ढलान पर जोशीमठ बसा है। एनटीपीसी की योजना तपोवन में बह रही सहायक नदी धौलीगंगा के पानी से बिजली बनाने की है। ये पानी तपोवन से टनल के जरिये एनटीपीसी के पावर हाउस सेलंग तक आएगा। बिजली बनाने के बाद इस पानी को विष्णुगाड़ स्ट्रीम के रास्ते अलकनंदा नदी में छोड़ दिया जाएगा।

पहली नजर में ये प्रोजेक्ट जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं। एनटीपीसी की टनल वैज्ञानिक भाषा में ‘इन सीटू रॉक’ को काटकर बनाई जा रही है। इन सीटू रॉक उस चट्टान को कहा जाता है जो सदियों से यथावत है। यह भूस्खलन के मलबे यानी पत्थरों, चट्टानों या मिट्टी से बना कोई पहाड़ नहीं जैसा कि जोशीमठ का है। मिश्रा कमेटी 1976 की अपनी रिपोर्ट में कह चुकी है कि जोशीमठ इन सीटू चट्टान पर नहीं बल्कि ये भूस्खलन के मलबे से बनी चट्टान पर बसा है। 

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