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उत्तराखंड

बोले आचार्य बालकृष्ण- वनस्पतियों के देश में आयुर्वेद की स्वीकार्यता के लिए संघर्ष दुर्भाग्यपूर्ण

पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने दावा किया कि दुनिया में जड़ी-बूटी आश्रित चिकित्सा पद्धतियों में हजारों पेड़-पौधे हैं, जो भारत में है। कहा, हिलिंग ट्रीटमेंट सिस्टम के रूप में कम से कम 10 सिस्टम हैं, जिनकी स्वीकार्यता वैश्विक स्तर पर है।

पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा, दुनिया में ट्रेडिशन मेडिसिन की स्वीकार्यता के क्षेत्र में चीन ने काफी प्रगति की है। कहा, यदि विश्वभर के वनस्पतियों के संग्रह को तीन हिस्सों में बांटकर देखा जाए तो एक हजार वनस्पतियों में भारत करीब 60 से 70 फीसद तक समृद्ध है। इसके बावजूद हमें अपने आयुर्वेद के चिकित्सा पद्धति की स्वीकार्यता के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

दावा किया कि दुनिया में जड़ी-बूटी आश्रित चिकित्सा पद्धतियों में हजारों पेड़-पौधे हैं, जो भारत में है। कहा, हिलिंग ट्रीटमेंट सिस्टम के रूप में कम से कम 10 सिस्टम हैं, जिनकी स्वीकार्यता वैश्विक स्तर पर है। इनमें आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति जो भारतीय संस्कृति और यहां के विरासत में रूप में है, इसको प्रसारित करने मेें काफी समय लग गया।

नियमावली और सरकारों की अनदेखी पर सवाल उठाते हुए कहा, अलग-अलग तरह की जो हीलिंग प्रेक्टिसेज हैं, वह एक हजार के करीब हैं। हीलिंग ट्रीटमेंट सिस्टम की बात करें तो इनमें से जो बड़ा सिस्टम है, वैश्विक स्तर पर वह आयुर्वेदिक है। इससे बड़ा सिस्टम नहीं है। कहा, दुर्भाग्य से आयुर्वेद का सिस्टम देश से बाहर बहुत कम जा पाया।

कहा, स्वीकारता का अर्थ यह नहीं कि जो ज्यादा काम करे। कहा, काम तो सभी ज्यादा करते हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के लिए चाइनीज ट्रेडिशनल मेडिसिन सिस्टम को जितना व्यापक प्रचार प्रसार मिला, उतना हमारी सरकारों ने लीगल तौर पर उसे मान्यता नहीं दी।

कहा, पांच हजार से अधिक जड़ी-बूटी और औषधीय के पेड़ पौधे 25 प्रतिशत भारत में पाए जाते हैं। इन पौधों में अगर 1000 पौधों को हम चाहते हैं तो दुनिया के तीन पार्ट में बांटने पर 67 प्रतिशत तक भारत में जड़ी-बूटी के रूप में भी समृद्ध हैं। चिकित्सा व्यवस्था के तमाम प्रणालियों में भी हम समृद्ध हैं, लेकिन देश में स्वीकार्यता के लिए तमाम संघर्ष करना पड़ता है।

कहा, आज स्वीकार्यता बढ़ी है, लेकिन एक साधारण जनमानस में आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को गरीब और अशिक्षित लोगों की चिकित्सा पद्धति के रूप में माना जाता रहा है। अब धीरे-धीरे स्वीकार्यता इस तरह बढ़ी है कि आयुर्वेद और वनस्पतियों की ओर लोग लौट कर आ रहे हैं।

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