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उत्तराखंड

 पहाड़ियों को ST के दर्जे का विरोध, जम्मू विश्वविद्यालय में प्रदर्शन, प्रवेशद्वार किए बंद

प्रदर्शनकारी छात्रों ने जमकर केंद्र सरकार और राज्यसभा सांसद गुलाम अली खटाना के खिलाफ नारेबाजी की। उन्होंने बताया कि वे पहाड़ी समेत कुछ अन्य समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने का विरोध कर रहे हैं। 

जम्मू विश्वविद्यालय में मंगलवार दोपहर को उस समय असमंजस की स्थिति बन गई जब एकाएक सभी प्रवेश द्वारों को बंद कर दिया गया। वहीं, मुख्य प्रवेशद्वार पर कुछ छात्र प्रदर्शन करते हुए दिखे। इस दौरान किसी आवाजाही पर रोक लगा दी गई। प्रवेशद्वार के बाहर पुलिस की तैनात रही।

प्रदर्शनकारी छात्रों ने जमकर केंद्र सरकार और राज्यसभा सांसद गुलाम अली खटाना के खिलाफ नारेबाजी की। उन्होंने बताया कि वे पहाड़ी समेत कुछ अन्य समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने का विरोध कर रहे हैं। 

प्रवेशद्वार बंद होने के चलते विवि की अंदर और बाहर पर वाहनों का लंबा जाम लग गया। एक तरफ छात्रों के नारेबाजी तो दूसरी तरफ अन्य छात्र आवाजाही को सूचारू करने की मांग करते रहे। करीब एक घंटे के बाद विवि प्रशासन ने पिछले प्रवेशद्वार को खोलने का फैसला किया, जिसके बाद विश्वविद्यालय में आवाजाही शुरू हुई। 

उधर, प्रदर्शन करते हुए छात्रों ने सरकार, विवि प्रशासन और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वे पहाड़ियों को असंवैधानिक तरीके से दिए जा रहे एसटी स्टेटस का विरोध कर रहे हैं। यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।

प्रदर्शनकारी एक छात्र ने कहा कि भाषा के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं किया जा सकता है। पहाड़ी बोलने वालों में ऊंची जाति के लोग भी हैं। जो योग्य नहीं हैं उन्हें आरक्षण देना गलत है। इसके लिए जो आयोग बना था उसमें भी गुज्जर बक्करवालों की नुमाइंदगी नहीं थी। पहाड़ी कौन है, आखिर यह कैसे परिभाषित होगा। इसके लिए कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है। 

एक अन्य छात्र ने कहा कि गुज्जर बक्करवालों को 1991 में दर्जा मिला था। उस दौरान भी पहाड़ी लोगों को इस दायरे में नहीं लाया गया। पहाड़ी इलाकों के लोग एसटी के दायरे में नहीं आते हैं। अब एसटी दर्जा देने के लिए बिल पेश किया जा रहा है। इसे रद्द किया जाना चाहिए।

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