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‘बवाल’ के बाद नितेश ने फिर लगाया गोता, टोटल टाइम वेस्ट फिल्म ‘तुमसे ना हो पाएगा’

निर्माता-निर्देशक जोड़ी नितेश तिवारी और अश्विनी अय्यर तिवारी का हिंदी सिनेमा में अपना एक ब्रांड रहा है। एक ने ‘दंगल’ बनाई, दूसरे ने ‘निल बटे सन्नाटा’। विज्ञापन फिल्मों का बड़ा नाम रहे इस दंपती ने हिंदी सिनेमा में खूब प्रयोग किए हैं। लेकिन, दोनों के साथ अब दिक्कत ये दिखने लगी है कि इनका बदलते दौर से संवाद धीरे धीरे खत्म होता दिख रहा है। प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई फिल्म ‘बवाल’ का जो हश्र हुआ, उसके बाद नितेश तिवारी ने अपने सिनेमा का पुनरावलोकन जरूर किया होगा। और, थोड़ा और आत्म चिंतन उनको दोनों की नई फिल्म ‘तुमसे न हो पाएगा’ करवाने जा रही है। ये फिल्म जाने पहचाने धरातल पर उगी है। और, जिस सोच पर ये फिल्म बनी है, उस पर दसियों वेब सीरीज पिछले पांच साल में मंथन कर चुकी हैं। अब विषय में न किसी की दिलचस्पी बची है और न ही उत्सुकता।

फिल्म ‘तुमसे ना हो पाएगा’ गौरव शुक्ला की कहानी है जिसका मन नौकरी में नहीं लगता है। नौकरी उसे बोरिंग लगती है। नौकरी को लेकर उसकी बॉस से बहस होती है। उसका मन नौकरी में नहीं लग रहा, क्योंकि जो वह काम कर रहा है उसमें उसका इंट्रेस्ट नहीं। बॉस समझता है कि किसी को भी नौकरी में इंट्रेस्ट नहीं होता है, इंट्रेस्ट जगाना पड़ता है। खैर, गौरव शुक्ला की इस मुद्दे पर बहस होती है और उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। अब गौरव के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि आगे क्या? नौकरी करेगा तो फिर वही समस्या आएगी। इसलिए वह खुद का एक बिजनेस शुरू करना चाहता है।

गौरव शुक्ला के किरदार को फिल्म ‘तुमसे ना हो पाएगा’ बनाने वालों ने सोचा अच्छा है लेकिन जो संघर्ष फिल्म में इस किरदार का है, वही संघर्ष इस फिल्म का अपने दर्शकों के बीच भी रहने वाला है।  गौरव शुक्ला बुजुर्ग महिलाओं की एक टीम बनाता है और टिफिन सर्विस शुरु करता है। इससे लोगों को घर का बना खाना मिलता और महिलाओं को रोजगार मिलता। देखते ही देखते गौरव शुक्ला का धंधा चल निकलता है। लेकिन, लेकिन कामयाबी इतने जल्दी मिलती कहां है, कामयाबी हासिल करने के लिए कई कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ता है। टूट कर बिखरना फिर आगे बढ़ना यही तो जिंदगी है। और, इसी क्रम में टूटते बिखरते गौरव शुक्ला आगे बढ़ता है। 

जी5 पर प्रसारित हुई बायोपिक ‘तरला’ का निर्माण नितेश तिवारी और  अय्यर तिवारी ने रॉनी स्क्रूवाला के साथ मिलकर किया था। उस फिल्म का विषय भी भोजन के स्वाद से जुड़ा हुआ था और ‘तुमसे ना हो पाएगा’ का भी विषय भोजन के स्वाद से जुड़ा हुआ है। खाना सभी बनाते हैं, लेकिन जो स्वाद मां के हाथ के बने खाने में होता है वैसा स्वाद कहीं नहीं मिलता क्योंकि मां के खाने में प्यार मिला होता है। इसीलिए गौरव शुक्ला कालोनियों की मांओ को इकट्ठा करके टिफिन सर्विस शुरू करता है। लेकिन फिल्म देखने का जो स्वाद फिल्म ‘तरला’ में मिला, वह इस फिल्म में नहीं मिला। इसकी सबकी बड़ी वजह रही है पूरी फिल्म में गालियों की भरमार।

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