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उत्तराखंड

विभाग नियम बदलता रहा और उलझती चली गई शिक्षकों की भर्ती, तीन साल से पूरी नहीं हुई प्रक्रिया

हाईकोर्ट के फैसले से स्नातक में 50 प्रतिशत से कम अंक वाले भर्ती हो चुके शिक्षकों की सेवाएं समाप्त होंगी। वहीं, इस दायरे में आ रहे अभ्यर्थी शिक्षक के पद पर अब भर्ती नहीं हो पाएंगे। प्रकरण को शासन को भेज दिया गया है। जिस पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाना है।

शिक्षा विभाग नियम बदलता रहा और शिक्षकों की भर्ती उलझती चली गई। यही वजह है कि वर्ष 2020 में 2,600 पदों के लिए शुरू हुई भर्ती तीन साल बाद भी पूरी न होकर एक बार फिर कानूनी दांव पेच में फंस गई है।

शिक्षा निदेशक रामकृष्ण उनियाल के मुताबिक, हाईकोर्ट के फैसले से स्नातक में 50 प्रतिशत से कम अंक वाले भर्ती हो चुके शिक्षकों की सेवाएं समाप्त होंगी। वहीं, इस दायरे में आ रहे अभ्यर्थी शिक्षक के पद पर अब भर्ती नहीं हो पाएंगे। प्रकरण को शासन को भेज दिया गया है। जिस पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाना है।

प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के 3,645 से अधिक पद खाली हैं। कई स्कूल एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। शिक्षकों के खाली पदों को भरा जा सके, इसके लिए विभाग की ओर से वर्ष 2020 एवं 2021 में सहायक अध्यापक के 2600 पदों के लिए आवेदन मांगे गए थे।

डीएलएड अभ्यर्थियों ने शिक्षक भर्ती के लिए किया आवेदन
राज्य के लगभग 40 हजार से अधिक अभ्यर्थियों ने भर्ती के लिए आवेदन किया था, लेकिन शिक्षा विभाग समय-समय पर विभिन्न आदेशों के माध्यम से शुरू से ही शिक्षकों की भर्ती को उलझाता चला आ रहा है। पहला मामला 15 जनवरी 2021 का है। जब शासन ने आदेश जारी किया था कि एनआईओएस से डीएलएड अभ्यर्थियों को भी शिक्षक भर्ती में शामिल किया जाए।

इस शासनादेश के बाद एनआईओएस से डीएलएड अभ्यर्थियों ने शिक्षक भर्ती के लिए आवेदन किया। इन अभ्यर्थियों के आवेदन करने के बाद शासन ने 10 फरवरी 2021 को एक अन्य आदेश जारी कर अपने 15 जनवरी 2021 के आदेश को रद्द कर दिया। शासन के इस आदेश से नाराज एनआईओएस से डीएलएड अभ्यर्थी इसके खिलाफ हाईकोर्ट चले गए। 14 सितंबर 2022 को हाईकोर्ट ने इन अभ्यर्थियों को शिक्षक भर्ती में शामिल करने का आदेश किया। इसके खिलाफ पहले बीएड अभ्यर्थी और फिर सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।

हाईकोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन दी गई थी नियुक्ति
दूसरा मामला नियम ताक पर रखकर सीटीईटी और यूटीईटी परीक्षा देने वाले बीएड अभ्यर्थियों का है। वर्ष 2012 से वर्ष 2018 तक बीएड अभ्यर्थी सीटीईटी प्रथम नहीं कर सकते थे, जबकि 2015 और 2017 में बीएड के आधार पर यूटीईटी नहीं की जा सकती थी, लेकिन विभाग ने इन अभ्यर्थियों का भी शिक्षक भर्ती में चयन कर लिया। मामले की शिकायत पर हालांकि विभाग ने बाद में इन अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किए।

तीसरा मामला स्नातक में 50 प्रतिशत से कम अंक वाले अभ्यर्थियों को शिक्षक भर्ती में शामिल करने का है। शिक्षक भर्ती सेवा नियमावली को ताक पर रखकर विभाग ने स्नातक में 50 प्रतिशत से कम अंक वालों को शिक्षक के पद के लिए नियुक्तिपत्र जारी कर दिए। अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद विभाग का कहना है कि हाईकोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन इन्हें नियुक्ति दी गई थी।शिक्षा विभाग तो शिक्षकों की भर्ती को लेकर नियमावली से चल रहा है, लेकिन अभ्यर्थी आपस में उलझ रहे हैं, एक मामला खत्म होता है, दूसरा आ जाता है। हम 1250 पदों पर भर्ती करने जा रहे थे, पर कुछ और रुकावट आ गई। 

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