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उत्तराखंड

मरीज हैं, अल्ट्रासाउंड मशीन है रेडियोलाॅजिस्ट नहीं, इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का ऐसा हाल

2012 तक वैकल्पिक व्यवस्था के ताैर पर उप जिला अस्पताल प्रेमनगर से एक रेडियोलॉजिस्ट सप्ताह में दो बार जांच के लिए आता था। लेकिन तीन साल तक नहीं आने से 2015 में प्रशासन ने अल्ट्रासाउंड मशीन का पंजीकरण ही रद्द कर दिया।

पछवादून के सबसे बड़े सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सहसपुर में एक रेडियोलाॅजिस्ट नहीं होने के कारण पिछले 12 साल से अल्ट्रासाउंड सेवा ठप है। सहसपुर ब्लॉक की करीब 1.84 लाख की आबादी इसी अस्पताल पर निर्भर है।

अब यहां के लोग और गर्भवतियां अल्ट्रासाउंड कराने के लिए प्रेमनगर और देहरादून की दाैड़ लगाने के लिए मजबूर हैं। दरअसल, 2012 तक वैकल्पिक व्यवस्था के ताैर पर उप जिला अस्पताल प्रेमनगर से एक रेडियोलॉजिस्ट सप्ताह में दो बार जांच के लिए आता था। लेकिन तीन साल तक नहीं आने से 2015 में प्रशासन ने अल्ट्रासाउंड मशीन का पंजीकरण ही रद्द कर दिया।

अमर उजाला ने गत वर्ष भी इस मुद्दे को उठाया था। जिसके बाद प्रशासन ने मामले का संज्ञान लिया और वर्ष 2023 के मध्य में अस्पताल के ही एक चिकित्सक को प्रशिक्षण के लिए भेज दिया। योजना थी कि प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मेडिकल अफसर के नाम से अल्ट्रासाउंड मशीन का दोबारा पंजीकरण कराया जाएगा। चिकित्सक छह माह का प्रशिक्षण लेने के बाद परीक्षा देकर लौट आए। सीएमओ ने पंजीकरण के लिए जब प्रशिक्षण प्रमाणपत्र मांगा तो पता चला कि वह परीक्षा में फेल हो गए हैं।

गर्भवतियों को होती है सबसे ज्यादा परेशानी

अल्ट्रासाउंड की जांच नहीं होने से गर्भवतियों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। इसके साथ ही निजी लैबों में जांच कराने पर कई गुना ज्यादा आर्थिक बोझ भी झेलना पड़ रहा है।

अल्ट्रासाउंड के लिए विभाग ने योजना बनाई थी। लेकिन, जब डाॅक्टर ही परीक्षा में फेल हो गए तो विभाग क्या कर सकता है। प्रदेशभर में रेडियोलॉजिस्ट की कमी है। अस्पतालों में तैनात चिकित्सकों को प्रशिक्षण के लिए आगे आना चाहिए।

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