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उत्तराखंड

बेटियों के लिए न सैनिक स्कूल बना न 28 साल में राजकीय कन्या महाविद्यालय, बुनियादी सुविधाएं भी नहीं

उत्तराखंड में बेटियों के लिए देश का पहला सैनिक स्कूल खुलना था, लेकिन आज तक बस इसके खुलने का इंतजार ही हो रहा है।

प्रदेश में बेटियों के लिए न सैनिक स्कूल बना न पिछले 28 साल में कोई नया राजकीय कन्या महाविद्यालय बना। वहीं, प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में 1200 से अधिक विद्यालयों में बालिकाओं के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव बना है। यह हाल तब है जबकि सरकार बालिकाओं को शिक्षा समेत हर क्षेत्र में बढ़ावा देने का दावा कर रही है।

सैन्य बहुल प्रदेश उत्तराखंड में बेटियों के लिए देश का पहला सैनिक स्कूल खुलना था। शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत ने एक जुलाई 2022 को सचिव विद्यालयी शिक्षा को इसके लिए प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिए थे लेकिन दो साल बाद भी प्रस्ताव तैयार नहीं हुआ।

हालांकि शासन ने इस मामले में शिक्षा महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा को पत्र लिखकर राज्य में बालिका सैनिक स्कूल की स्थापना के लिए प्रस्ताव मांगा था। शासन ने शिक्षा महानिदेशक को दिए निर्देश में कहा कि प्रस्ताव को जल्द तैयार कर भेजा जाए ताकि समय पर इसे केंद्र सरकार को भेजा जा सके। बालिका सैनिक स्कूल की स्थापना के लिए राज्यकर विभाग से सेवानिवृत्त ज्वाॅइंट कमिश्नर एसपी नौटियाल मामले को तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री तक लेकर पहुंचे थे।

प्रदेश में हल्द्वानी में है एकमात्र राजकीय कन्या महाविद्यालय

प्रदेश में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल से संबद्ध राजकीय कन्या पीजी कॉलेज ऑफ कॉमर्स, हल्द्वानी में है। जिसकी स्थापना 31 मार्च 1996 में हुई। उच्च शिक्षा विभाग की निदेशक डाॅ. अंजू अग्रवाल बताती हैं कि लड़कियों के लिए हल्द्वानी के अलावा कोई दूसरा राजकीय कन्या महाविद्यालय नहीं हैं। हालांकि बालिकाओं के लिए कुछ अशासकीय महाविद्यालय हैं।

बेटियों के लिए विद्यालयों में है बुनियादी सुविधाओं का अभाव

प्रदेश के कई विद्यालयों में बालिकाओं के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव बना है। 1011 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं है। 173 उच्च प्राथमिक, 105 माध्यमिक विद्यालयों में बालिका शौचालय नहीं है। जबकि कुछ में बिजली और पेयजल की भी समस्या बनी है। राज्य में कक्षा एक से 12 वीं तक के 4913 विद्यालयों में खेल मैदान भी नहीं है।

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