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उत्तराखंड

ग्लैमर की दुनिया से राजनीति के मैदान में…, अभी कंगना रनौत को सीखना होगा राजनीति का ककहरा

राजनीति में नवागंतुक कंगना को पार्टी के जमीनी लोगों और मतदाताओं से घुलना-मिलना होगा, ताकि उन्हें लगे कि वह एक आम कार्यकर्ता हैं।

उन्नीसवीं सदी के विक्टोरियन यथार्थवादी दार्शनिक थॉमस हार्डी के ‘अवसर और नियति’ के दर्शन के अनुरूप एक अनजान दुनिया में खुद को स्थापित करना उनका अकल्पनीय सपना था। इसलिए वह फिल्म उद्योग में अपनी किस्मत आजमाने मुंबई की खतरनाक यात्रा पर निकल पड़ीं, जहां वह विजयी होकर उभरीं।

कंगना के लिए मुंबई की ग्लैमरस जिंदगी से अनिश्चित राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखना पूर्वनिर्धारित लगता है, जो उन्हें अपने पहाड़ी राज्य के लोगों की सेवा का अवसर दे सकता है। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के भांबाला गांव की लड़की कंगना रनौत की इतनी बड़ी सफलता का श्रेय उनके दृढ़ संकल्प, प्रतिबद्धता और इच्छाशक्ति को दिया जा सकता है।

बॉलीवुड की सबसे सफल अभिनेत्रियों में से एक और हिंदुत्व विचारधारा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कट्टर समर्थक कंगना रनौत मंडी लोकसभा सीट से राजनीति के नए क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए तैयार हैं, जिससे मुकाबला फिल्मी अंदाज में पलट सकता है। लगता है कि कंगना ने अपने कॅरिअर की दूसरी पारी के लिए अपने पत्ते अच्छे से खेले और भाजपा के उन वरिष्ठ नेताओं को पछाड़ दिया, जो दशकों से पार्टी के प्रति समर्पित थे।

कंगना ने अपने परिवार से विद्रोह किया, जो उनके बॉलीवुड में जाने के खिलाफ थे, क्योंकि फिल्म उद्योग अनिश्चिंतताओं एवं दुविधाओं से भरा है, भले ही अवसर काफी हों। कंगना के माता-पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बने, लेकिन उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा ही नहीं दी। कम आय होने पर रोटी एवं अचार पर गुजारा करने के बावजूद उन्होंने बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई। हालांकि मुंबई में अपना घर नहीं होने और बढ़ते कर्ज के कारण उनके जीने का संघर्ष बढ़ गया था। कंगना स्पष्टवादी इंसान हैं, जो खुद को ‘जिद्दी और विद्रोही’ बता सकती हैं।

कंगना रनौत को आगे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि सक्रिय राजनीति फिल्मी परी कथाओं जैसी नहीं होती है। अनिवार्य रूप से मतदाता उनसे एक पूर्णकालिक राजनेता होने की उम्मीद करेंगे। इसके लिए उन्हें मंडी को अपना स्थायी निवास स्थान बनाना होगा, ताकि लोग उनसे अपनी शिकायतों के निवारण के लिए संपर्क कर सकें। विश्लेषकों का मानना है कि राजनीति का अनुभव नहीं होने के कारण उन्हें असाधारण मेहनत करनी होगी, हालांकि मोदी के करिश्मे और भारी लोकप्रियता से यह संभव हो सकता है। साथ ही, उन्हें भाजपा के अनुशासित कार्यकर्ताओं, विशाल संसाधनों और आरएसएस की चुनावी मशीनरी का समर्थन भी मिलेगा। 2021 में हुए मंडी लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह ने भाजपा से यह सीट छीन ली थी, जो मुख्यतः दिवंगत वीरभद्र सिंह के प्रति सहानुभूति के कारण थी, लेकिन राजनीतिक माहौल अब बदल गया है, क्योंकि कांग्रेस अव्यवस्थित है, जिससे कंगना को फायदा हो सकता है।

यह एक संयोग ही था कि कंगना को उनके 37वें जन्मदिन पर 23 मार्च को मंडी लोकसभा सीट से टिकट दिए जाने की खुशखबरी मिली। खुद को दक्षिणपंथी विचारधारा से जोड़ने वाली और कट्टर मोदी समर्थक बताने वाली कंगना का आरएसएस से घनिष्ठ संबंध रहा है। यही वजह है कि राजनीति का अनुभव नहीं होने के बावजूद पार्टी ने उन्हें टिकट दिया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी हिमाचल प्रदेश से हैं और कंगना को टिकट दिलाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अलावा उन्हें केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का भी समर्थन हासिल है, जो राज्य के हमीरपुर जिले के हैं। सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी होने के बाद बेहद उत्साहित कंगना ने कहा, ‘मैं अपने जन्मस्थान हिमाचल प्रदेश से चुनाव लड़ने का मौका देने के लिए भाजपा नेतृत्व का आभार व्यक्त करती हूं।’

कंगना और विवाद एक-दूसरे के पर्यायवाची हो गए हैं। अक्सर वह अपने विवादित बयानों के कारण सुर्खियों में रहती हैं। बार-बार उल्लंघन के कारण ट्वीटर ने भी उनके खाते को स्थायी रूप से निलंबित कर दिया था, लेकिन बाद में प्रतिबंध हटा लिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीति में नवागंतुक होने के कारण कंगना को अपनी फिल्मी शैली से दूर रहना होगा और जमीनी स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के साथ घुलना-मिलना होगा, ताकि उन्हें लगे कि वह एक आम आदमी की तरह हैं, न कि बॉलीवुड की फिल्म स्टार। उन्हें अपने व्यक्तित्व में इस तरह के बदलाव से गुजरना होगा, जो एक सफल राजनीतिज्ञ बनने के लिए अनिवार्य है।अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें

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